शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

२८ साल

उम्र के इस पड़ाव में,
जब आपकी जी हुई ज़िन्दगी दुनियाँ के लिए 'कुछ नहीं' सी है,
बेशक दुनियाँ से आपको (कम के कम इस वक्त तक तो) कोई सरोकार नहीं (था).
तब बैठ जाते हैं,
एकांत में आप.



ये अंतस का एकांत...
अनेक के बीच स्वेच्छा का एकांत...
(सनद रहे, स्वेच्छाएं अत्यंत सीमित हैं अब आपकी.)
ऑफिस में रेनोल्ड्स पेन के बगल में पड़ा एकांत,
घर में चलते हुए डी. वी. डी. के नीचे छुपा के रखा गया एक रुपये के सिक्के सा एकांत.
भीड़ में किसी जानने वाले की जान बूझ के दी गयी टक्कर को  'भाई सा'ब माफ़ करना' कहकर आगे बढ़ जाने सा एकांत.
'उसकी' आँखों में उभर आई उदासी को पोछते हुए उसके होंठ चूम लेने का कामुक एकांत.
वो एकांत जो आवश्यक है आपकी मुट्ठियों का खिंचाव बढ़ाने के लिए.
वो एकांत जो ज़रूरी है किसी ज़रूरी कागज़ को इतने टुकड़ों में फाड़ने के लिए,
कि हर हिस्से में बस एक शब्द आये,
'प्रेम', 'भविष्य', 'सपने', 'इश्वर'.
और ये सब एक एक कर...
लगभग एक साथ...
कूड़ेदान में फैंक दी जाएँ...

सपने देख चुकने और जाग जाने के बीच की ये उम्र...
ये उम्र,
जब सारे युद्ध ख़त्म हो गए,
जीत और हार की वजह से नहीं...
थक जाने की वजह से.


बीमारियाँ,
'संवेदनाओं के बुके' की हद तक पहुंचा के वापिस आ जाती हैं.
ये उम्र जब,
'तेरी माँ की...' कहके आप ठहाके लगा के हँसते नहीं,
गलियां भी अब स्ट्रेस बस्टर हैं बस.

उम्र के इस पड़ाव में,
सोच जिहादी नहीं सूफियाना हो जाती है....
...क्यूंकि 'क'* से शुरू होने वाले सवाल उगने लगते हैं.

______________________
*कब, क्यूँ, कहाँ, कैसे, आदि.

40 टिप्‍पणियां:

  1. २८ साला जिंदगी और जवानी कहीं दफ़न हो गयी हो जैसे ..............मैंने तो तेरे बदन पर उग आये इश्क़ को कल ही काटा हो जैसे ........................

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  2. ऑफिस में रेनोल्ड्स पेन के बगल में पड़ा एकांत,
    घर में चलते हुए डी. वी. डी. के नीचे छुपा के रखा गया एक रुपये के सिक्के सा एकांत.
    भीड़ में किसी जानने वाले की जान बूझ के दी गयी टक्कर को 'भाई सा'ब माफ़ करना' कहकर आगे बढ़ जाने सा एकांत.
    'उसकी' आँखों में उभर आई उदासी को पोछते हुए उसके होंठ चूम लेने का कामुक एकांत.
    वो एकांत जो आवश्यक है आपकी मुट्ठियों का खिंचाव बढ़ाने के लिए.

    Jai Ho !

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  3. उम्र के इस पड़ाव में,
    सोच जिहादी नहीं सूफियाना हो जाती है....
    ...क्यूंकि 'क'* से शुरू होने वाले सवाल उगने लगते हैं.

    ______________________
    *कब, क्यूँ, कहाँ, कैसे, आदि
    bahut hi sukshm vishleshan

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  4. kya likhu kuch samajh me nahi aata,
    aapke shabd ghare arth rakhte hain!
    bahut accha...
    #ROHIT

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  5. " उम्र के इस पड़ाव में,सोच जिहादी नहीं सूफियाना हो जाती है....
    बहुत खूब आपकी रचना का एकांत बोलता है ....

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  6. बहुत अच्छे ...गहरे भाव लिए रचना ...

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  7. उम्र के इस पड़ाव में,
    सोच जिहादी नहीं सूफियाना हो जाती है....
    ...क्यूंकि 'क'* से शुरू होने वाले सवाल उगने लगते हैं.
    Umr ke chadhav ka utar dekhte rahe!

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  8. गलियां भी अब स्ट्रेस बस्टर हैं बस.
    सूफियाना सोच कहीं सूफियाना गालियाँ (मानसिक स्तर पर केवल) बनकर एकांत को विस्तार तो नहीं देती.
    सुन्दर सोच --- सार्थक और सूफियाना

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  9. इस उम्र मे एक का सिक्का भी खनकना बन्द कर देता है ।
    भूखा कलवार गिर गिर पड़े लोग कहें मतवाला है - जैसी स्थिति ? आप इसे जो चाहे वह कह सकते हैं ।

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  10. अपने अन्दर का एकांत जब बोलता है तो अंतस ही सुनता है…………………एक बहुत गहरी रचना।

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  11. pareshaan kyun lag rahe ho jhon...?

    ??

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  12. ऑफिस में रेनोल्ड्स पेन के बगल में पड़ा एकांत


    मैं यही एकांत कहीं ढूंढ रहा था राइटर...थैंक्स...खोज कर दे देने के लिए..

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  13. नहीं अच्छी लगती बच्चे की ज़वानी
    या फिर
    जवान की बुढ़ौती
    अच्छा लगता है
    बच्चे का बचपन
    जवान की जवानी
    और बूढ़े का
    सूफियाना अंदाज।


    हाय!
    पूरी जी लेती है जिंदगी
    २८ वर्ष की उम्र
    आजकल!
    यह वही उम्र थी
    जब लगता था
    कि बच्चे हो गए अब
    जवान।

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  14. aahein bhar baht ke jeete raho




    uma...

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  15. वो एकांत जो ज़रूरी है किसी ज़रूरी कागज़ को इतने टुकड़ों में फाड़ने के लिए,
    कि हर हिस्से में बस एक शब्द आये,
    'प्रेम', 'भविष्य', 'सपने', 'इश्वर'.




    सपने देख चुकने और जाग जाने के बीच की ये उम्र...
    ये उम्र,
    जब सारे युद्ध ख़त्म हो गए,
    जीत और हार की वजह से नहीं...
    थक जाने की वजह से.


    सोच की हद है
    लाजवाब कर दिया (:-|)

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  16. "ऑफिस में रेनोल्ड्स पेन के बगल में पड़ा एकांत,
    घर में चलते हुए डी. वी. डी. के नीचे छुपा के रखा गया एक रुपये के सिक्के सा एकांत.
    भीड़ में किसी जानने वाले की जान बूझ के दी गयी टक्कर को 'भाई सा'ब माफ़ करना' कहकर आगे बढ़ जाने सा एकांत."

    ऎसा एकांत सोचा जा सकता है, महसूस किया जा सकता है पर कहा नही जा सकता.. तुमने तो इसे कह भी दिया.. :)

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  17. और क्या बोलू.. २८वी मेरी भी है.. गालिया स्ट्रेस बस्टर भी नही रही अब.. अब इन्हे कोई और खिलौना चाहिये... जिहाद कबका मर चुका था.. सूफ़ियत भी धीरे धीरे मरने की कगार पर है.. कभी कभी लगता है कि इक उम्र मे भी हम कितने उम्र जी लेते है..

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  18. इस पोस्ट पर मेरे कम्पूटर से ये चौथा कमेन्ट है...

    उमा कि कनपटी पर रिवाल्वर रख कर ये प्राची के पार पढवाया ...और फिर ऐ.के.४७ रख कर कमेन्ट करवाया....

    यूं ही आहें भर भर के जीते रहना...(आशीर्वाद भी जिहादी नहीं...सूफियाना हो गए हैं..)

    पर एक बात अजीब लगी...हमारे ऊपर के दोनों अनामी कमेंट्स वो पहचान गयी...
    जब कि वो ब्लोगर भी नहीं है...

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  19. ये उम्र,
    जब सारे युद्ध ख़त्म हो गए,
    जीत और हार की वजह से नहीं...
    थक जाने की वजह से.

    सारे युद्धों का यही भवितव्य होता है..अवश्यंभावी...चाहे खुद से युद्ध हो या जीवन से..दुनिया की सबसे बड़ी लड़ाइयों के विजय-चिह्न और पराजय-प्रतीक अंततः जमीन की कोख मे ही समा जाते हैं..ब्चपन कितना सही बैठता है यहाँ..मै थक गया हूँ खेलते-खेलते सो लड़ाई खत्म करते हैं यहाँ!..यही किसी की जीत है तो किसी की हार...
    ..और क्या!!

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  20. उम्र के इस पड़ाव में,वाद विवादों में पड़ने से बचने लगता है पर मन में जिरह सी चलती रहती है.कई खानाबदोश ख्याल दिलों दिमाग पे पक्के निवास बना लेते है.ज़ी चाहता है वक़्त रुक जाये पर ये भी कि किसी न किसी तरह से गुजर जाये.उम्र का हर दौर(बचपन से बुढ़ापे तक)किसी दीवार या छत पे चलने जैसा है.जिसका अंत निश्चित है और गिरने का भय भी..

    कविता में शिल्प के बड़े और जोखिम भरे प्रयोग प्रगतिशील कवि ही कर सकता है.यहाँ प्रयोग (कथ्य )के कारण है.कवि और पाठक का रिश्ता कविता में बना हुआ है.कवि के मन की बेचैनी पाठक के मन पे लगातार दस्तक देती रहती है..बढ़िया अभिवियक्ति बधाई..

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  21. हर हद मिट जाती है जब अंतस की आवाज हमारे मौन से टकराती है। प्रभावशाली लेख ........

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  22. इधर कुछ बारिशे गिरी है ...वक़्त निकालकर मै कुछ कविताओं में बैठ गया हूँ...अभी अभी सागर को पढ़ा फिर तुम्हे....शायद सिगरेट के किसी बड़े लम्बे कश जैसा है ...खास तौर से भर पेट खाने के बाद .उस सिगरेट का जिसे आप बांटते नहीं....अकेले हाथ में लिए .उंगुलियो में फंसाए .उसके धुंए को भी एन्जॉय करते है .......जितना विद्रोही तुम इन कवितायों में नजर आते हो....उससे एक तस्वीर बनती है ...पर कविता के दूसरी जानिब की ख़ामोशी मुझे कभी कभी कंफ्युस करती है......शायद ये भी कैफियत होगी

    उसकी' आँखों में उभर आई उदासी को पोछते हुए उसके होंठ चूम लेने का कामुक एकांत.
    वो एकांत जो आवश्यक है आपकी मुट्ठियों का खिंचाव बढ़ाने के लिए.
    वो एकांत जो ज़रूरी है किसी ज़रूरी कागज़ को इतने टुकड़ों में फाड़ने के लिए,


    कभी कभी भीड़ में आकर चिल्लाना जरूरी होता है .......अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के वास्ते ...








    "ये उम्र जब 'तेरी माँ की... ' कहके आप ठहाके लगा के हँसते नहीं,
    गलियां भी अब स्ट्रेस बस्टर हैं बस.

    उम्र के इस पड़ाव में,
    सोच जिहादी नहीं सूफियाना हो जाती है....
    ...क्यूंकि 'क'* से शुरू होने वाले सवाल उगने लगते हैं."

    तुम्हारी बेस्ट लाइन है .....क्यूंकि असली सी लगती है .ठीक वैसी जैसी मैंने २८ की उम्र में लिखनी चाही थी ......

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  23. किसी शायर ने कहा है-
    हुए तो क्या किया हमने नहीं होते तो का करते ?

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  24. kewal se kewal me hai kewal itna hi
    darpan me paardarshita shaamil ho chuki hai.
    from me for u


    hope ypu recognise. gangola mohalla,mohit pan bhandar

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  25. कभी रेनॉल्ड पेन भी खो जाता है। और उम्र ऐसी होती है कि याद नहीं आता कहां रखा था!

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  26. बीमारियाँ आपको 'संवेदनाओं के बुके' की हद तक पहुंचा के वापिस आ जाती हैं बस.
    ये उम्र जब 'तेरी माँ की... ' कहके आप ठहाके लगा के हँसते नहीं,
    गलियां भी अब स्ट्रेस बस्टर हैं बस.

    ज़िंदगी से इतनी निराशा ... इतना आक्रोश होना ठीक नही .... खिलती हुई चिड़िया भी है, उगता सूरज भी है ... खूचनुमा मौसम भी है ..... उमीद है कविता की निराशा जीवन में नही है ....

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  27. kya likhe ho boss... kamal ka poem hai.....after along time i read this kind of poem.........ekdum jabardust......... speechless

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  28. कभी तो ऐसा हो कि मैं तुम्हारा लिखा कुछ पढ़ूँ और हैरान हुये बिना रह सकूँ? कभी तो हो ऐसा...! लेकिन नहीं, तुम्हारी लेखनी शायद ऐसा होने देती है।

    "इस उम्र में दर्द क्यूँ नहीं हैं?
    सिगरेट, शराब अपने असर एकत्रित कर लेती हैं बस"...ये जो लिखते हो तुम ऐसा या ऐसा ही कुछ, तो कैसे ऐसा होता है हर बार कि मेरा मन कह पड़ता है यही तो मैं भी कहना चाहता था। तुम्हारे जैसे बिम्ब क्रियेट करने का सामर्थ्य नहीं मुझमें। चाहूँ भी तो पैदा नहीं कर सकता ये सामर्थ्य...बस उन्हीं ’क’ वाले सवालों में उलझ जाता हूँ :-)

    कैसे हो?

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  29. ऑफिस में रेनोल्ड्स पेन के बगल में पड़ा एकांत,
    घर में चलते हुए डी. वी. डी. के नीचे छुपा के रखा गया एक रुपये के सिक्के सा एकांत.
    भीड़ में किसी जानने वाले की जान बूझ के दी गयी टक्कर को 'भाई सा'ब माफ़ करना' कहकर आगे बढ़ जाने सा एकांत'

    hmm, ye ekaant...sach baat hai,

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  30. एंकात को बहुत बखूबी बयान किया बहुत सुंदर

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  31. बार बार आया यहाँ, आज सोचा बता ही दूँ..

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  32. इस एकांत की कोई तो उम्र होगी .... और एकांत इतनी जल्दी ... किसी की चोट है या दर्द से उभरे नही अभी तक ....

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  33. इस सब के लिये २८ साला होना ज़रूरी नहीं होता.. शायद

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  34. एकांत की परिभाषाएँ देखकर अच्छा लगा, कि कोई एकांत को भी समझा सकता है।

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'ज़िन्दगी' भी कितनी लम्बी होती है ना??
'ज़िन्दगी' भर चलती है...