रविवार, 15 अगस्त 2010

रिविज़न ज़िन्दगी

और सुनो...
इसे रिविज़न ज़िन्दगी कहते हैं,
जिसकी लत   मर जाने से भी अच्छी है...
जिसकी सिहरन कब्रिस्तान !
...उंघती हुई मक्खियों के बीच भकोसना...
मोमोज़, आंसू वाली चटनी के साथ.
कुछ सोचने में याददाश्त का गुम ही रहना.
खूब सारी शराब पीकर...
खून की उल्टियाँ करना.
और पेट के हर निचोड़ में,
आँखें बाहर आते हुए देखना...
सिगरेट के इतने लम्बे कश खींचना कि,
दर्द तड़प के माफ़ी मांगे...
"स्मोकिंग किल्स...
...टाइम !!"
अफ़सोस कि हम सृष्टि के सबसे शांत समय में पैदा  हुए.
कुछ न हो पाने की वजह से आत्महत्या कर लेना.
ऐसे ही फॉर अ चेंज !
"४ वर्ष के गुड लक के लिए २० लोगों को फोरवर्ड करें." 

22 टिप्‍पणियां:

  1. पढ़कर लगता है..कि सारी परेशानियां कम हो गयी हैं...

    सच...हम स्रष्टि के सबसे शांत समय में पैदा हुए हैं...?

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  2. बहुत सशक्त पक्ष रखा है आपने।
    लहू तो अभी भी बह रहा है।

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  3. जबरदस्त!

    स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.

    सादर

    समीर लाल

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  4. बहुत सशक्त पक्ष रखा है आपने।
    लहू तो फिर भी बहा ही न।

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  5. स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आप एवं आपके परिवार को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ!

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  6. अफ़सोस कि हम श्रृष्टि के सबसे शांत समय में पैदा हुए....!

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  7. मुश्किल है तुम्हे समझ पाना..और तुम्हारी कविताओँ को..और यह जो दर्द अजगर जैसा पसर कर बैठा रहता है रास्ते मे..ठिठकी जिंदगी को साइड नही देता..यकीन करने को जी चाहता है..हम स्रष्टि के सबसे शांत समय की संताने हैं..नो चैलेंजेस, नो मूवमेंट, नो क्रांति..कोई ग़म भी नही..सो बोरिंग!..कि बस सुइसाइड से ज्यादा एडवेंचरस और कुछ रह ही नही गया है..एक मॉसोकैस्टिक नशा..सिगरेट मे खुद को सुलगा कर साँस-साँस पीने का सुख..घूँट-घूँट मरने का आनंद..
    ..शायद यही हो आपकी रीविजन जिंदगी..
    फ़ॉर अ चेंज...

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  8. आत्महत्या से ज्यादा एडवंचरस कुछ नहीं ....
    ऐसे शांत समय में जन्म लेना ...
    नहीं ...बहुत कुछ चुनौती पूर्ण है इसके अलावा भी ..
    किसी बंजर बियाबान में एक नन्हा पौधा लगाना ...
    किसी की सूनी आँखों की रौशनी बन जाना ...
    किसी रोते हुए को हँसाना ...अनगिनत ...!

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  9. god...u r just amazing boy....

    "smoking kills time" believe me, u had me on this.

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  10. अफ़सोस कि हम श्रृष्टि के सबसे शांत समय में पैदा हुए.
    कुछ न हो पाने की वजह से आत्महत्या कर लेना.
    ऐसे ही फॉर अ चेंज !


    इस तरो-ताजी नई विचारधारा को परोसने का हार्दिक शुक्रिया !

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  11. "कुछ न हो पाने की वजह से आत्महत्या कर लेना.
    ऐसे ही फॉर अ चेंज !"
    छोटे शहरों वाले बडे बडे शहरों में ऊबकर ऎसी छोटी छोटी बातें करते रहते हैं.. बाकी जो तुमने हिलाया है उसके लिये क्या ही कहूँ..

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  12. सही हो...
    या नही भी
    पर एक बात है ....... सुसाईड....फोर अ चेँज
    ओर हां मैने 20 लोगों को फौर्वोर्ड कर दिया है.. अब गुड लक देख्ना है ........फौर अ चेंज.
    सत्य

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  13. फिर से आया था पढ़ने और किसी को मोबाइल पर सुनाने के लिये। अपूर्व की बातों से सहमत हूं कि सचमुच कभी-कभी तुमको समझना बड़ा मुश्किल हो जाता है कि किस मनःस्थिति में तुमने ये लिखा होगा।

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  14. कबिता संबेदनशील है..लेकिन गुडलक के लिए रबर का गेंद उछालना कि उ भाग्य लेकर आवेगा.. हमारे बस का नहीं..

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  15. लगता है कोई रिश्ता है अँधेरे का सिगरेट के साथ.....वैसे कहने वाले पर्पोश्नल बताते है.....पर कभी कभी चार यार हंस बोलते बतियाते कितनी फेफड़ो में खींच लेते है ....आज तक बटन ढूंढ रहे है ....रिवाइंड करने वास्ते पर जो रिवाइंड करना चाहते है ....वो नहीं होता.......बेवफाई शगल जो ठहरा .....जिंदगी का


    वैधनिक चेतावनी : निराशाये फॉरवर्ड नहीं की जाती

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  16. पता नहीं कितनी बार पढ़ चूका हूँ इसे, गूगल पर बज्ज़ भी किया था.... एक बैचलर को फिर एक बड़े जन समूह को जैसे साकार कर दिया हो.

    इसे रिविज़न ज़िन्दगी कहते हैं,
    जिसकी लत मर जाने से भी अच्छी है...
    जिसकी सिहरन कब्रिस्तान !
    ...उंघती हुई मक्खियों के बीच भकोसना...
    मोमोज़, आंसू वाली चटनी के साथ.
    कुछ सोचने में याददाश्त का गुम ही रहना.
    खूब सारी शराब पीकर...
    खून की उल्टियाँ करना.
    और पेट के हर निचोड़ में,
    आँखें बाहर आते हुए देखना...
    सिगरेट के इतने लम्बे कश खींचना कि,
    दर्द तड़प के माफ़ी मांगे...
    "स्मोकिंग किल्स...
    ...टाइम !!"
    अफ़सोस कि हम श्रृष्टि के सबसे शांत समय में पैदा हुए.
    कुछ न हो पाने की वजह से आत्महत्या कर लेना.
    ऐसे ही फॉर अ चेंज !
    "४ वर्ष के गुड लक के लिए २० लोगों को फोरवर्ड करें."

    पूरा कोट कर दिया ना. क्या करें एक भी लाइन छोड़ने का मन नहीं हुआ...
    अ ग्रांड सल्युट दर्पण...

    यह भी एक अजीब विडंबना है की दर्द हमें इस तरह सुकून देता है. संभाले रहो, मरे जाओ और जिए जाओ, इसका उल्टा भी उतना ही सही है.

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  17. bahut khub,aap ki har rachna badi achhi lagti hai,humesha likhte rahen shukriya

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  18. दर्द जब हो रशा होता है तो दर्द देता है पर रिवीज़न के समय दर्द का रिवीज़न मज़ा देता है ... सकून देता है ... क्या क्या लिखते हो यार ...

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  19. Itna Pain kyon likhte han Darpan....Jab badlaav hota hai kisi bhi yug mein to achche aur bure badlaav dono hote hain....Insaani aadat hai ki wo jin baato ka aadi hota hai use nahi chod pata...baat nazariye ki bhi hai aur acceptance ki bhi ....bahut hi sensitive writing hai aapki....kisi roz kuch halka-fulka likhiye....Halke ho jayenge :-)

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'ज़िन्दगी' भी कितनी लम्बी होती है ना??
'ज़िन्दगी' भर चलती है...