गुरुवार, 23 जून 2011

लाइफ इन अ मेट्रो : माइग्रेन

रात शब्द वाकई डरवाना है,
जिसकी परिभाषा में,
बिल्लियाँ लड़ने के लिए बदनाम हैं,
और शियार रोने के लिए बने हैं.
इसमें 'रहस्य' और 'जंगल' के प्रेम सम्बन्ध सी वर्जना है
लेकिन फिर भी मैं इसे आपसे बांटना पसंद नहीं करता.
उफ्फ्फ !
माफ़ कीजिये पर...
आपके 'हस्तक्षेप' का शोर सन्नाटे से ज्यादा खतरनाक है.
स्लीपिंग पिल्स ३ गली छोड़ के मिलती है.
देशी शराब ४...
और मौत...
...टक्कर* पे.

मेरे एक अज़ीज़ मित्र 'ग़ालिब' ने तिलमिला कर गजलें-गाना बंद कर दिया है.
"दिल्ली में रहें गायेंगे क्या?"
(इस दर्द को ग़ज़ल की भी पनाह नहीं मिलती.)
यीट्स बावनवें पन्ने में खाली हुई डिस्प्रिन के स्ट्रिप्स का बुकमार्क लगा के सो गया है.
ताजमहल का नक्शा खो जाने की स्थिति में सनद रहे शिल्पकार के हाथ कटे हुए हैं.
नींद से पहले के 'दो घंटों के उमस भरे रंग' मोनालिसा की प्रेतात्मा को जीवंत कर उठे हैं.
अमीर खुसरो का ध्यान भंग हो रहा है...
"चल खुसरो घर आपने रैन 'नहीं' इस देश."
ऐसा ही रहा तो पानीपत की लड़ाई में 'लो-ब्लड-प्रेशर' जीत जायेगा.
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*टक्कर = दिल्ली में टी-पॉइंट को टक्कर भी कहते हैं.



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25 टिप्‍पणियां:

  1. गोल गोल घूम रही हूँ अभी तो ,जीने के लिए तो टेंशन है ही मरने के लिए भी इत्ती बड़ी वाली टेंशन ...मोह माया उफ़

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  2. पूर्णतः कुंठा से भर गया हूँ, यहाँ पढ़ कर लगता है साला हम (मैं) क्या लिखता हूँ और क्यों लिखता हूँ ? हमारी आबादी ज्यादा है तो बेहतर है कि ऐसे आतंक मचने वाले को ही मार दिया जाए... तब आपको भी इज्ज़त मिलेगी... "तब ही" आपको इज्ज़त मिलेगी.

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  3. शायद पहली बार आया यहां. बहुत दिनों बाद ऐसी पोस्‍ट देखा, जिसे दुबारा पढ़ने का मन होता है.

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  4. लाइफ इन मेट्रो वाली झकास है .धांसू एक दम..........कट्टे जैसे शब्द जब बरसो बाद कागजो पर मिलते है ...तो खौफ पैदा नहीं करते ...भले से लगते है अजीब बात है न ..... वाकिफ है .ओवरकोनफिड़ेंस कभी कभी ये "सिक्वेल " भी दे देता है ....
    , वकत तो पता बेशक लगेगी लेकिन तुमको ये बात कैसे पता लगेगी?.....love this line .

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  5. ये 'चीज़' तो इन्फेक्ट 'आपको' जांच परख रही थी.


    adha adha padh kar comment dene kaa man hai aaj...


    chuski le le kar...

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  6. ये 'चीज़' तो इन्फेक्ट 'आपको' जांच परख रही थी.


    adha adha padh kar comment dene kaa man hai aaj...


    chuski le le kar...

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  7. आत्महत्या' और बात है 'बदनामी का डर' और.

    :)

    muskuraahat aaraam se sujhti hai hamein...

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  8. . कम से कम अपने शर्तों पे. आपने ज़िन्दगी जब अपनी शर्तों से गुज़ारी है (तभी तो ये सब हो रहा है आपके साथ. तभी... ) तो .....


    :)

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  9. ruk.....

    ek ajeeb saa SMS aayaa hai saalaa.....



    aataa hoon ise samjh kar...

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  10. क्या देसी कट्टे से फायर किया है..

    वैसे यह जो इस दशा के लिए जिम्मेदार चीज़ें हैं.. वास्तव में इन में से एक भी ना होती तो कितना अच्छा होता
    वोह कहते हैं ना -
    Life was easier when apple and blackberry were just fruits.

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  11. बेनामी23 जून, 2011 23:34

    जहाँ से आपने अपने पाँच साल के बेटे और चार साल की वाईफ के लिए शॉपिंग कि है... (

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  12. Boss, kafi blog dekhela apun ne, lekin bolnaich padega, bole to "Sahitya" ka touch edhar jo mila na, jhakas....

    Aur bole, to sala mind bhi aaj soch raha tha...

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  13. "'ज़िन्दगी' भी कितनी लम्बी होती है ना??
    'ज़िन्दगी' भर चलती है..."

    इस पोस्ट वाली तो जिन्दगी के बाद भी चल रही है। LIC की ’जीवन आनंद’ पालिसी हो गई है साली, जिन्दगी के साथ भी, जिन्दगी के बाद भी।

    गज़ब लिखते हो आप।

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  14. क्रांति,विद्रोह ये सब आपके लेखन में किसी स्लो poison की तरह है...अच्छा है लिखने से मन का बोझ बंट जाता है बेचैनी कुछ कम हो जाती है..

    आलस के जोश में का विरोधाभास..मार्केट से पैसा उठाना और मार्केट में ही डूब जाना कैसे....यादों की बेतरतीबी..ऎसी कितनी चीजे है कहानी में जो सोच में डाल देती है कोई कैसे ऐसे सोच सकता है...

    मूवीज ने मरने को इतना emotional बना दिया है कि उस तरह का मरना देख कर लगता है कितना अच्छा होता है मरना आपके अपने आपके लिए रोयेंगे..ये सोच कर आप खुद भी रो पड़ते हो...पर जब आप मर ही गये तो क्या पता बाद में.....
    बहरहाल कहानी के लिए कॉग्रेट्स..

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  15. बड़ा लम्बा अनुभव है आत्मा हत्या , कट्टा सुसाइड नोट लिखने का . गहन विश्लेषण , दर्शन,अर्थ और अंक शास्त्र ( गणित ) का भी . अर्थ शास्त्र में पैसा घूमते - घूमते घूम जाता है शेयर मार्केट की तरह .

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  16. मन में घटित कितने ही दृश्यों की चित्रकारी।

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  17. आप का बलाँग मूझे पढ कर आच्चछा लगा , मैं बी एक बलाँग खोली हू
    लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/

    मै नइ हु आप सब का सपोट chheya
    joint my follower

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  18. सामाजिक व्रिदूपता पर इससे तीखा कटाक्ष संभव नहीं।

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    TOP HINDI BLOGS !

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  19. आपकी किसी पोस्ट की चर्चा होगी कल शनिवार (१६ -०७-११)को नयी-पुराणी हलचल पर |कृपया आयें और अपने सुझाव दें....!!

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  20. सलीम मलिक17 जुलाई, 2011 17:00

    'ज़िन्दगी' भी कितनी लम्बी होती है ना??
    'ज़िन्दगी' भर चलती है...
    लेकिन जिंदगी छोटी भी हो खुशनुमा हो !

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  21. सामाजिक व्रिदूपता पर तीखा कटाक्ष .

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'ज़िन्दगी' भी कितनी लम्बी होती है ना??
'ज़िन्दगी' भर चलती है...