मंगलवार, 16 अगस्त 2011

अवसाद का डाटा-बेस

12-08-2011
तुमको (तुम्हारे लिए नहीं) कुछ प्रेम कवितायें लिखनी थीं, पर जो मेरी मौलिक होनी थीं वो तो पहले ही लिखी जा चुकी हैं.
"तुमको चाँद सा कहना, तुमको चाँद कहना, तुमको चाँद ना कहना, चाँद को तुमसा कहना, चाँद को तुम कहना, तुमको चाँद से बढ़कर कहना..."
अच्छा क्या ये भी कहा जा चुका है की "चाँद बस तुमसे थोड़ा ही ज़्यादा खूबसूरत है?"
"मुझे भूल जाना, मुझे याद रखना, मैं वापिस आऊंगा, मैं वापिस नहीं आऊंगा, तुम बुलाओगी तो मैं सात समन्दर पार से भी आ जाऊँगा, तुम बुलाओगी तो भी मैं नहीं आऊंगा."
मुझे तो ये भी लगता है कि शायद ये भी पहले कोई कह चुका है "बुला के देखना पर पहले भूला के देखना."
...हो सकता है, हो सकता है क्या यकीनन कई नई सारी बातें प्रेम में कहनी बाकी हैं अभी. पर 'प्रेम' ना बदला है ना बदलेगा, प्रेम वही है...
वही...
...वो, पुराना वाला !
कितनी अच्छी बात है ना?
मैं नहीं जानता कि 'आई लव यू' को कितने अलग तरीकों से, कितनी अलग भाषाओं कितनी अलग बोलियों में कहा जा सकता है. एक गाना था, फ़िर एक फोरवरडेड मेल भी . और ये दोनों बातें तुम्हें पहली बार 'आई लव यू' कहने से पहले की हैं.
लेकिन  जैसे वो 'एफ. आई. आर.' धारावाहिक की लड़की यूनिफ़ॉर्म में ही सबसे बेस्ट लगती है, वैसे ही (मुझे) आई लव यू, 'आई लव यू' में ही बेस्ट लगता है.
आरती का मतलब जानती हो? पूरी पूजा में जो भी त्रुटियाँ रह जाती हैं,उनका भू.चू.ले.दे., पूजा की कोई विधी ना जानूं जैसा कुछ..
आई लव यू दरअसल नायिका की आरती है.
तुम कहती हो कवि होकर प्रेम कवितायें तो छोड़ो प्रेम के दो शब्द नहीं लिख सकते?
ओ पागली ! ये प्रेम करने की उम्र है, लिखने की नहीं. उसके लिए 'खुशवन्त सिंह', 'गुलज़ार' और 'जावेद अख्तर' हैं ना...
कई लेखक बड़े 'जेनुएन' होते हैं, अपनी आप बीती अपनी मनः स्थिति लिखते हैं, अपना जिया लिखते हैं, पर कुछ लेखक मुखौटा धारी होते हैं, नकली, दोगले मेरी तरह. अगर मैं  लेखक हूँ तो. (वैसे तुम कहती हो मुझे 'लेखक' मैं तो मानता भी नहीं.)
अभी प्रेम कवितायें लिखने से इसलिए भी कतराता हूँ कि अगर आपनी कविता की नायिका के होठों, केशों या बाहों से थोड़ी इधर उधर भटका तो लोगों को लगेगा (मुझे लगेगा कि लोगों को लग रहा है, क्यूंकि ये सच है/होगा) कि वो नायिका तुम हो.

I don't want anybody to think about you in the samy way as I do, Rather I don't want to think that somebody is thinking about you in the same way as I do.

तुम कहती हो तुम नहीं होगी तो मैं प्रेम कवितायें अच्छी लिखूंगा. मैं कहता हूँ, "ग़लत" !
क्यूंकि जब तुम नहीं होगी तब भी प्रेम तो होगा ही. हाँ एक वक्त ऐसा आएगा कि मैं प्रेम से विरक्त  हो जाऊँगा(उस विरक्ति के लिए बुढ़ापा जरूरी नहीं बता दूं तुम्हें). तब शायद....
...यानी जब भी तुम्हें लगे कि मैं प्रेम कवितायें अच्छी लिख रहा हूँ  तो जान जाना जानाँ की मेरे जीवन में अब प्रेम कहीं नहीं है.

अभी तो मुझे क्रांतियों के बारे में लिखने दो, क्यूंकि मुझे रोड क्रॉस करने का फोबिया है.
अभी मुझे उस गरीब भिखारी बच्चे के बारे में लिख लेने दो, क्यूंकि मैं उसके लिए कुछ नहीं कर सकता. (घृणित है पर लेट मी एक्सेप्ट 'करना भी नहीं चाहता.')
अभी मुझे आत्महत्या का मनोविज्ञान पे 'थोथा चना' लेख लिख लेने दो, लिख लेने दो मुझे 'मोक्ष प्राप्ति' कि विधियां, क्यूंकि मुझे तैंतीस करोड़ योनियों में भटकना ही है.
लिख लेने दो मुझे इतिहास क्यूंकि वो बदला नहीं जा सकता, लिख लेने दो मुझे भविष्य क्यूंकि वो यक़ीनन वैसा नहीं होगा जैसा मैं लिखूंगा. मुझसे वर्तमान लिखने को मत कहो प्लीज़...
जी लेने दो मुझे वर्तमान, कर लेने दो मुझे प्रेम.
___________________________________
पुनःश्च आई लव यू !



13-08-2011
तुम्हारा थक जाना,
मेरी हार में हुए सत्यापित हस्ताक्षर हैं.
हार जाने,
और हार स्वीकार कर लेने में,
तुम्हारे थक जाने का अंतर है.



14-08-2011
ये पन्ने इन शब्दों के लिखे जाने से पहले खाली थे,
इनपे कुछ और भी लिखा जा सकता था,
बिल्कुल अलहदा...
राशन का सामान,
महीने का हिसाब,
और लिखी जा सकती थी इनमें कविता.


15-05-2011
गल्तियाँ तुम्हारी होतीं तो तुम्हें अपनाना,
इक एहसास-ए-सुकून-ए-एहसान होता,
पर मेरा कितना बड़ा दिल है देखो,
मैं अपनी गल्तियों के बावजूद,
तुम्हें अपनाना चाहता हूँ.
बॉल इज़ इन यौर कोर्ट नाऊ...


16-05-2011
अच्छा साहित्य 'आपदाओं' की नहीं, 'संगठित आपदाओं' की देन है, क्यूंकि वो 'सर्वजन दुखाय' है.
बिहार एक संपन्न राज्य है जिसमें गरीब लोग रहते हैं, उसी तरह ये समय सृष्टि के प्रारब्ध से अब तक का सबसे शान्त समय है जिसमें कुछ छोटे छोटे एक्सट्रीम विभत्स पल हैं, सृष्टि के प्रारब्ध से अब तक के...
और उनकी संख्या लाखों करोड़ों में है,
'फूट डालो राज्य करो' का ग्राफ देखा है?
दो में बाटों, चार में, सोलह, चौसठ.... ....लाख, करोड़ और...
...राज करना और आसान...
और आसान.
आश्चर्य जनक रूप से फूट भी दुखों में पड़ी है, और राज भी दुःख कर रहे हैं.
दर्द, दुःख,अवसाद सबको है किन्तु एकाकी....
साहित्य की पेंसिलीन, 'दंगों', 'क्रांतियों' और 'वैश्विक-परिवर्तनों' के लिए है.
इसलिए अभी तो 'डिस्प्रीन','क्रोसीन','इनो','पुदिन-हरा' जैसे विचार,लेख,कहानियाँ,कवितायें हैं बस.
हाँ, कुछ रूमानी गीतों,गजलों की 'स्लीपिंग-पिल्स' भी.
ये सब जरूरी हैं, ये सब समय की मांग हैं, 'मुन्नी' , 'शीला' और 'रज़ियाओं' के 'पेन किलर' की तो सबसे ज़्यादा.
अभी आवश्यक है बहुत कुछ लिखा जाना, आईटमाइज्ड पर टेलर मेड.
स्पेक्ट्रम विशाल है अवसादों का, इसलिए कोम्पेक्ट कम.
वोल्यूम इज़ इन्वर्सली प्रपोश्न्ल टू डेंसिटी.
किसी एक्सटेंडेड वीकेंड में मिनियापोलिस या बाल्टीमोर के अपने सब-अर्ब घर के बैकयार्ड में चिकन बार्बैक्यु करते इन्सान के दुःख किसी सामान्य परिस्थिति में ठीक उतने ही लगते हैं जितने रोहतक बाई पास के किसी ढाबे में बैठे, बारह घंटे ट्रक चलाने के बाद बुनी हुई चारपाई में 'नारंगी' पीते, मुर्गा फाड़ते इन्सान के.
ठीक बराबर, दशमलव के चार स्थानों तक शुद्ध नापने के बाद भी. पर इकाई अलग है और इसलिए रिलेट नहीं हो पाते. दुखों की इक्वेशन में एक दूसरे को एक्स आउट नहीं कर सकते.
इसलिए जब कहानी लिखने की सोचता हूँ तो फंस जाता हूँ, परेशानियों के पंचतंत्र में, अवसादों के अलिफ़ लैला में.
और अन्त में अपने अवसादों के बारे में लिखकर सो जाता हूँ या सोने की कोशिश करता हूँ. हाँ हाँ में मतलबी हो गया हूँ, पर मतलबी होकर भी खुश नहीं हूँ, भगवान कसम.
बहरहाल....
"सर्वे भवन्तु सुखिना."

24 टिप्‍पणियां:

  1. हम सब अपने अपनी कहानियां लिख लें बस...हमरे वक़्त की तस्वीर अपने आप पूरी हो जायेगी...आपको पता हो न हो, हम किसी विशाल जिगसा पजल का हिस्सा हैं...हमारा फ़र्ज़ बस इतना बनता है की अपने हिस्से का सुख-दुःख...अधूरी कवितायेँ, कहानियां जो न लिखी गयी...सब पेपर आउट करते रहे...इतना ही हमारा कंट्रीब्यूशन है...कुछ लिख कर अगर हम अपने होने के सबूत छोड़ सकें तो होना सार्थक हो जाता है. बरहाल कवितायेँ लिखना जारी रहना चाहिए...

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  2. पहले को पढ़ के फैज़ की ये नज़्म याद आती है:- ज़रा देखिये फैज़ इतने मकबूल क्यों थे

    'मुझसे पहली मुहब्बत मेरी महबूब न मांग
    मैनें समझा कि तू तो दरख्शां है हयात
    तेरा गम है तो गमें - दहर का झगडा क्या है
    तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
    तेरी आँखों के सिवा दुनियां में रखा क्या हैं ?

    तू जो मिल जाये तो तकदीर निगूं हो जाये
    यूँ न था , मैने फकत चाहा था यूँ हो जाये
    और भी दुःख है जमाने में मुहब्बत के सिवा
    राहतें और भी हैं वस्ल कि राहत के सिवा
    अनगिनत सदियों के तारिक बहीमाना तिलिस्म
    रेशमो - अतलसो - कम ख्वाब में बुनवाये हुए
    जा - ब - जा बिकते कूचा - ओ - बाज़ार में जिस्म
    खाक में लिथड़े हुए खून में नहलाये हुए

    लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे
    अब भी दिलकश है तेरा हुस्न , मगर क्या कीजे

    और भी दुख है जमाने में मुहोब्बत के सिवा
    राहतें और भी है वस्ल कि राहत के सिवा
    मुझसे पहली से मुहब्बत मेरे महबूब न मांग "

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  3. पता नहीं, तुम्हें हिचकियाँ आती हैं कि नहीं? अभी बात कर रहा था तुम्हारे बारे में ही किसी मेरे ही तरह तुम्हारे फैन साथ.... तो पढ़ने बैठ गया तुम्हारी ये नई पोस्ट| अपनी कमतरी का आहास लिए वापस जा रहा हूँ....

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  4. संगठित आपदाओं के इस समय में प्रेम करने वाले मिसफिट नहीं हैं? खैर पता नहीं.
    बहुत दिनों बाद तुम्हें पढ़ा... नहीं पढ़ती क्योंकि तुम्हें समझने के लिए एकाग्रचित्त होना पड़ता है और मेरा तो इस समय चित्त ही पता नहीं कहाँ-कहाँ फिरा करता है उसे पकड़ पाऊँ, तो शायद फिर पढ़ पाऊँ तुम्हें.

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  5. आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें
    वाह ...बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  6. इतने पेंचो-खम और ऐसा प्रवाह, वाह.

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  7. अवसाद का डाटा बेस........
    या जिंदगी का केस..

    पता नहीं..
    पर बेहतर है अपने को फना करने के लिए

    क्यों इर्ष्या होती है ... पता नहीं.

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  8. मेरा अब भी मानना है के बहुतेरे लेखको में सरोकारों की एक लगातार एब्सेंट रहती है .....लम्बे समय तक उनकी सोच का विस्तार कभी प्रेम ,दुःख विरह से परे नहीं जाता....कुछ शब्दों की लफ्फाजी तो करते है पर वे क्या कहना चाहते है ...अंत में स्पष्ट नहीं हो पाते ..तभी मै तुम्हे दूसरो से अलग मानता हूँ ओर निसंकोच कहता हूँ के कई छपने वाले युवा लेखको से कही .कही बेहतर तुम्हारा नजरिया है....ओर इस बात की पुष्टि करता है के छपा हुआ सब कुछ श्रेष्ठ नहीं होता ...
    मुझे लगता है इतना सब कुछ इतने कम स्पेस में देना ...कंप्यूटर के स्क्रीन के साथ थोड़ी ज्यादती है!
    कभी तुमने कहा था तुम कोपी पेस्ट करने वाले राइटर हो...सोच रहा हूँ तुम कोपी पेस्ट भी मौलिक से कितना श्रेष्ठ है !
    आज मूड थोडा अलहदा था सुबह से कुछ पढना टाल रहा था ..पर
    you made my day!!

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  9. इत्ता कुछ एक ही दिन में...एक ही पोस्ट में ???
    क्या google वाले अपनी ब्लॉग services बंद करने वाले है ???

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  10. 'ये पन्ने इन शब्दों के लिखे जाने से पहले खाली थे'....!!!!!

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  11. 16-05-2011 ko likha gaya mood...previous lekho se different hain.....Na jaane kyon post ka yun ending kuch odd laga....ya ye kah lo naked sach jaanne aur samajhne ke liye dimaag taiyaar nahi tha....agree hain aapse...present to sirf jiya jaata hai aur jeena bhi chahiye...Mind it baat kahi jaa rahi hai....likhe ki tareef nahi :-)

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  12. कभी प्रेमियों की कविताए नहीं होती और कभी कवियो की प्रेमिकाए नहीं होती..........!!
    अवसाद इतना मधुर है तो अव्श्य ही मुझे जो हो रहा है उसे ईर्ष्या कहते होंगे...! कहते ना भी होंगे..!!

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  13. चाय कहीं भी मिल जाए..पी ली जाती है..
    मगर ऑफिस में चाय छोटू से मांगा कर पी जाए तो वो मज़ा नहीं दे पाती..जो चाय की दुकां पर आकर देती है..शायद वैसे ही तेरी ये पोस्ट ..या तेरी कोई भी पोस्ट....कितनी ही चीज़ें यूं ही शेय'र (शे'र) नहीं..कर ली जाती हैं....

    मगर प्राची के पार आने से ( जाने से नहीं )....

    आने से..

    लगता है जैसे चाय की दुकान पर बैठ कर...उस वक़्त के लिए बेहद जरूरी स्टूल पर बैठे अपने ही हाथों की बनी चाय पी रहे हैं...
    दोनों उँगलियों के बीच दबे कीमती सिगार भी अक्सर अंगूठे की दाब ढूंढते हैं..

    हाँ,

    अक्सर...

    कमेन्ट पोस्ट नहीं हो रहा..शायद मेल हो जाए..

    तू पोस्ट कर denaa..

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  14. ye kyaa...??

    praachi ke paar aakar to apani soorat hi badal gayi...

    ye kyaa huaa...

    ??????????????????????????

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  15. - मैं नहीं जानता कि 'आई लव यू' को कितने अलग तरीकों से, कितनी अलग भाषाओं कितनी अलग बोलियों में कहा जा सकता है

    ये पढकर ’एनी हॉल’ फ़िल्म में वूडी का एक सीन याद आया-
    ‎"Love is too weak a word for what I feel - I luuurve you, you know, I loave you, I luff you, two F's, yes I have to invent, of course I - I do, don't you think I do?"

    डायरी पूरी पढी, समझने की कोशिश भी की। हाँ कोशिश ही :-) बस फ़िर यही समझ आया। सोच रहा हूँ कह दूं, इसका यहाँ क्या मतलब होगा काश मुझे पता होता:
    "A ship in a harbor is safe but this is not what a ship is built for."

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  16. भाई आप तो पूरा जंगल ही छान लेते हो, इन रास्तों पर ढलान बहुत है फिसलने का डरसता रहा है

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  17. रोजनामचे से झांकता इक शख्स....प्रेम पर लिखने से घबराता शख्स!

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  18. सुन्दर. प्रेम करते रहो, कविता तो बनती ही जायेगी.

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  19. "तुम कहती हो तुम नहीं होगी तो मैं प्रेम कवितायें अच्छी लिखूंगा. मैं कहता हूँ, "ग़लत" !
    क्यूंकि जब तुम नहीं होगी तब भी प्रेम तो होगा ही. हाँ एक वक्त ऐसा आएगा कि मैं प्रेम से विरक्त हो जाऊँगा"

    दर्पण साहब मौलिकता का तो पता नहीं .....पर आपने मेरे मुंह की बात छीन ली .... :)

    आपके सारे मुक्तक लाजवाब और unique है...

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  20. दर्पण जी,

    आरज़ू चाँद सी निखर जाए,
    जिंदगी रौशनी से भर जाए,
    बारिशें हों वहाँ पे खुशियों की,
    जिस तरफ आपकी नज़र जाए।
    जन्‍मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ!
    ------
    मायावी मामा?
    रूमानी जज्‍बों का सागर है प्रतिभा की दुनिया।

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  21. :) कमेन्ट के प्रारंभ में ही ये मुस्कराहट इसलिए क्यूंकि कुछ अच्छा पढने के बाद मुस्कराहट खेल ही जाती है होंठों के साथ...प्यार मोह्हब्बत युवाओं के स्थाई विषय है पर आई लव यू कहकर भी भी देश दुनिया पर नजर रखना और सारी बातों को एक ही भगोनी के खोलते पानी में डालकर मसालेदार चाय बनाना बड़ी बात है....आपने अपनी इस पोस्ट में वही किया हर महक है केसर से लेकर इलायची तक....:)

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'ज़िन्दगी' भी कितनी लम्बी होती है ना??
'ज़िन्दगी' भर चलती है...