शनिवार, 16 जनवरी 2010

...मुझपे उधार रहे.

आज कुछ रिश्तों से पुराना हिसाब हो , चलो !!

प्रिये ,मैं आज वापिस करता हूँ तुम्हारी 'एक आंसू' की मुस्कान ,
दे दो तुम भी मुझे मेरे बालों से बनी गोल -गोल अंगूठियाँ
तुम्हारी हर बात की चिंगोटीयाँ मगर उधार रही .

दोस्त,वो रंगीन महफिलें याद हैं मैंने तुम्हें दी थी?
क्या तुम अपने कंधो में रखे हाथ से बदलोगे ?
मगर तुम्हारी सिगरेट के ३ कश फिर भी मुझपे उधार रहे.


माँ, क्या लौटाओगी मुझे वो गीली रातें ?
ले सकती हो तुम मेरा सब कुछ, सब कुछ...
फिर भी, तुम्हारा गीला आँचल मुझपर उधार रहा.


बहना तेरी गुडिया जो छुपाई थी मैंने, अभी भी वहीं हैं शायद,
पर पहले वो "पानी के बुलबुलों की मछली " दे !!
हाँ मगर, वो संतेरे वाली हाथ के पसीने से काली हुई टॉफी मुझपर उधाररही .

पिताजी , लौटाना चाहता हूँ तुम्हारे संस्कार .
हर एक गोद की सवारी से बदलकर ,
तुम्हरी ऊँगली में मेरी उँगलियों का घेरा उधार रहा.


इश्वर ,अगर कुछ पुन्य पाप के बही खाते में से बचे,
मेरी अद्वैत आत्मा ले लो,और बस , बस !
वो "योगभ्रष्ट " मन कैसे दूं तुम्हें ? हाँ, उधार रहा.


कह दो इ स मकां से कि अपनी छत ले ले और,
लौटा दे मेरा बंजारापन .
यादों की खिड़कियाँ मुझपे उधार रही.


फलक , मेरे मुट्ठी में बंद चाँद तारे चाहिए तो,
मेरा छोटा सा आकाश का हिस्सा मुझे वापिस दे दो.
सपनों का इन्द्रधनुष मुझ पे उधार रहा.


ज़िन्दगी अपनी सारी यादें ले लो ,
उन पुराने लम्हों को दे दो बस ,
साँसों का सिलसिला? चलो , उधार रहा.


दर्द तुम्हें लौटाता हूँ में सारा सुकूं ,
हर तड़पती नस मुझे वापिस चाहिए.
हाँ मगर, तुमसे पैदा 'ये नज़्म' उधार रही ........


इसलिए ये नज़्म ... .
...."लिख रहा हूँ ...."
. .. हिसाब में!
शायद कभी चूका पाऊँ ?
किश्तों में...

39 टिप्‍पणियां:

  1. इश्वर ,अगर कुछ पुन्य पाप के बही खाते में से बचे,
    मेरी अद्वैत आत्मा ले लो,और बस , बस !
    वो "योगभ्रष्ट " मन कैसे दूं तुम्हें ? हाँ, उधार रहा.
    इस कविता ने मुझे निशब्द कर दिया है , तुम्हारा भावः संसार इतना विशाल है की शब्द विलुप्त होने लगे हैं...
    बहुत सुन्दर रचना....हमेशा की तरह..अद्वितीय .....अद्भुत

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  2. यह मार्मिक उधारी न कभी चुकाई जायेगी और न चुकाने की तमन्ना होनी चाहिए.

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  3. waah ......kya khoob likha hai......lajawaab prastuti.

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  4. aur haan ,
    meri gudiya kahan rakhi hai abhi batao..
    paani ke bulbule ki machli main bhej dungi aur haan agle janm meri shaadi mein tuhein hi sab kuch karna hai....'Bhangda' bhi samjhe ki nahi...
    Di...

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  5. waah
    waah
    bahut khoob
    _________nayaapan aakarshak laga
    ___________sukhad ehsaas.........

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  6. माँ, क्या लौटाओगी मुझे वो गीली रातें ?
    ले सकती हो तुम मेरा सब कुछ, सब कुछ...
    फिर भी, तुम्हारा गीला आँचल मुझपर उधार रहा.
    दर्पन अब तो मेरे पास शब्द भी नहीं बचे कि कुछ कह सकूँ पूरी रचना का एक एक शब्द मर्म को छूता हुया गहरे तक जाता है ।
    इश्वर ,अगर कुछ पुन्य पाप के बही खाते में से बचे,
    मेरी अद्वैत आत्मा ले लो,और बस , बस !
    वो "योगभ्रष्ट " मन कैसे दूं तुम्हें ? हाँ, उधार रहा.
    मगर तुम्हारे सारे उधार तो ये लिख कर ही खुदा ने माफ कर दिये अब तुम कर्ज़ मुक्त हो बहुत सुन्दर अद्भुत रचना के लिये बधाई और आशीर्वाद्

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  7. KOUN LAUTAANA CHAAHEGA IN SAB YAADON KO.....KOI KISMAT KAA MARA BHI INKAA MOOLY JAANTA HOGAA.... VO BHI NAHI LOUTAAYEGA

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  8. बहोत खूब दर्पण कमाल की बात कही है हर लफ्ज में दर्द पिरोया है तुमने ... वाकई नज्मों की दुनिया में तुम्हारा नाम कल स्वर्णाक्षरों में होगा ....

    फिर भी तुम्हारा गिला आँचल मुझपर उधार रहा ...

    तुम्हारी उंगली में मेरी उन्गलिओं का घेरा उधार रहा...


    बहोत खूब हुजूर...बहोत बढ़िया...


    अर्श

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  9. उधारी की बात सच्ची लगी ,कविता ज़िन्दगी की तरह सच्ची लगी ................... दर्पण भाई जिंदगी का दर्पण दीखता है आपकी कविता में ,.........

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  10. आज कुछ न कह पाऊँगा दरपण.......बस चुप हूँ, इसके बाद और कोई रचना पढ़ना इसकी तौहीन होगी। तुम हर बार अपने आप को मात दे रहे हो। "संदूक" या "उधार रहा" -i am confused...."गुल्ज़ार" या "दरपण" -i am again confused...

    एक सच इसमें मेरा भी है, मैं खुद अपनी बहन की शादी में नहीं जा पाया था....

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  11. आज कुछ रिश्तों से पुराना हिसाब हो , चलो !!


    वाह ....क्या खूब हिसाब किया आपने......!!

    और ये........

    कह दो इस मकां किया से कि अपनी छत ले ले और,
    लौटा दे मेरा बंजारापन ....

    लाजवाब ....नयापन लिए......अच्छी लगी ......!!

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  12. मैं भी यही कह रहा था...
    संदूक से छूटो तो वो कमबख्त रेडियो.......
    और अब ये..
    हां,
    मगर हाथ के पसीने से मैली हुयी...
    वो संतरे वाली टॉफी..
    चल उधार रही.........

    देर से देख रहा था इसे..
    कितनी कितनी शेप्स में आती थी ना वो संतरे वाली गोलियाँ....

    पता नहीं कहाँ जा रहा था मैं..
    शुक्र के तुम संभाल लाये मुझे...

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  13. john tumne kuchh change kiya hai upar bahan waale me ... aur wakai gautam bhai ke kathan se main sahmati rakhta hun mera puraa aashirvaad pyaar aur dulaar tumhaare saath hai is naayaab nazm keliye .... nazmo ki duniya ka dusaraa betaaj baadshaah
    udhar harkirat ji hain aur idhar tum bahot bahot badhaayee john ye nazm wakai tumne kya likhaa hai tumhe khud bhi nahi pataa ....loot ke legaye tum to mujhe .... ufffff ab kya kar sakta hun


    arsh

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  14. darpan , main to pahli baar aai apke blog per
    padha or bhav vibhor ho kuch likhne ke liye comment per aai to dekha ki maharathiyo pahle hi bahut kuch likh diya hai, to bus itan hi kahungi

    APKI RACHANA KA EK SHABD MAN KO CHOO RAHA
    EK BAAR KO LAGA GUM HI HO JOUNGI IN SHABDON KE SHATH, BAHUT KUCH YAAD DILLAYA AAPNE.
    BEHTAREEN RACHANA.

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  15. बहुत ही खूबसूरती से लिखी गयी रचना. गुलजार जी से बहुत प्राभवित है आप.उनकी रचनायें बेहतरीन होती है. आभार.

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  16. दर्पण आपने बिलुल सही कहा ...गुलज़ार की रचनाओं को मे बेहद पसंद करती हूँ...हालाँकि उन्हे मैने पढ़ा बहुत कम है पर जितना भी पढ़ा है दिल मे उतार जाता है ...शायद यही बात है कि उनका प्रभाव मेरी रचनाओं मे जाने अंजाने झलक जाता है ....
    रिश्तों से आपका पुराना हिसाब करना दिल को छू गया ...इस गीत की उधारी मुझे हमेशा याद रहेगी

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  17. दर्पण, मेरा उत्‍साहवर्धन करने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया, आपकी गजल बहुत खूबसूरत है। यहां दोबारा इसलिए आना पडा़ क्‍योंकि बात करने का जरिया यहीं नजर आया। शुक्रिया।

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  18. बड़ी कसक भरी रचना ..
    थोडा भावुक भी करती हुयी ...
    जो उधार रहा . .वो कैसे कोई चुका पायेगा

    you write Amazing !!

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  19. माँ, क्या लौटाओगी मुझे वो गीली रातें ?
    ले सकती हो तुम मेरा सब कुछ, सब कुछ...
    फिर भी, तुम्हारा गीला आँचल मुझपर उधार रहा.
    bahut sundar

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  20. sab ki taarif jayaz hai .ada ji ne bhi bahut khoob kaha .sachmuch main hi padhate waqt stabdh ho gayi thi .har shabd ghumate hi jaa rahe dimaag me . itna khoobsurat likha hai ki byan nahi kar paa rahi .samne hote to daad jaroor deti .is zajbaat aur gahare ahsaas se urin nahi ho sakate kabhi ye to kudarat ki den hai .

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  21. दर्द तुम्हें लौटाता हूँ में सारा सुकूं ,
    हर तड़पती नस मुझे वापिस चाहिए.
    हाँ मगर, तुमसे पैदा 'ये नज़्म' उधार रही ........

    दर्द तुम्हें लौटाता हूँ में सारा सुकूं ,
    हर तड़पती नस मुझे वापिस चाहिए.
    हाँ मगर, तुमसे पैदा 'ये नज़्म' उधार रही ........


    लिखने में बहुत गहराई है आपके...! इनकी प्रशंसा करने के लिये भी आप सी काबिलियत चाहिये...! शायद मुझ मे नही है...!

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  22. darpan,
    shukriya aapka ki aap is nacheez ke blog par aaye aur comment kiya....
    ur creations above is awesome...
    i'll keep on coming...
    u also keep roaming at my blog...
    thanks again...

    जवाब देंहटाएं
  23. दर्पण जी आपके यहाँ नशिस्त कि रपट पढ़ने के बाद से ही परिचित हूँ वो एक सुंदर सा चेहरा कैसे भूला जा सकता है ?
    कुछ समयाभाव ऐसा है कि कम ही व्यक्त कर पाता हूँ अपने आपको. ताजा रचना आज पढ़ी है कई बार और फिर देखो आपको जान पाउँगा आपकी रचनाओं से.

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  24. काव्य-लेखन में अक्सर कल्पना शीलता ,
    कल्पना तरंग या दिव्या-स्वपन
    जैसी धारणाओं को ही आधार बनाने के प्रयास
    किये जाते हैं .
    अन्तरंग भावनाओं का प्रकटीकरण ,
    आत्मजात सुख-दुःख का संवेदनाओं का रूपांतरण ....
    यही सब ही रचनाओं में झलकता है ( अक्सर )
    लेकिन यहाँ.....
    न आडम्बर , न दिखावा ....
    हर चीज़ , हर बात
    आलौकिक ...दिव्य ....

    भव्यता हमेशा दिव्य नहीं होती ...
    लेकिन दिव्य हमेशा भव्य होता है

    एक दिव्य ,
    आलौकिक ,
    ईश्वरीय रचना कह लेने के
    सच्चे प्रयास पर
    सम्पूर्ण ब्लॉग-जगत का अभिवादन स्वीकार करें

    "लौटा सको तो लौटा दो मुझे , मेरी जो लगन है, लौ है तुझसे ,
    सुकूँ...जो तुझसे मिला ....उधार है मुझ पर "

    ---मुफलिस---

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  25. बहुत बढिया लिखा है आपने।बधाई स्वीकारें।

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  26. फलक , मेरे मुट्ठी में बंद चाँद तारे चाहिए तो,
    मेरा छोटा सा आकाश का हिस्सा मुझे वापिस दे दो.
    सपनों का इन्द्रधनुष मुझ पे उधार रहा.


    ज़िन्दगी अपनी सारी यादें ले लो ,
    उन पुराने लम्हों को दे दो बस ,
    साँसों का सिलसिला? चलो , उधार रहा.

    बहुत बढ़िया दर्पण जी,
    शब्दों का सुंदर और सटीक प्रयोग..
    विचार अवतरित होते है जो दिल को छू लेते है.

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  27. दर्पण जी,

    दिल्ली आने पर मिलना उधार रखते हुये अपनी बात कहना चाहूंगा कि गौतम जी ने जो कहा कि आज अब और कुछ नही पढ़ना तो बिल्कुल दुरूस्त कहा है।

    दर्द तुम्हें लौटाता हूँ में सारा सुकूं ,
    हर तड़पती नस मुझे वापिस चाहिए.
    हाँ मगर, तुमसे पैदा 'ये नज़्म' उधार रही ........

    कमाल की रचना!!!!

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी
    ९४२५०६५११५

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  28. इन सबके आगे मेरा कमेन्ट अलगसे क्या हो सकता है?..पढ़ते समय आँखें नम होती रहीँ ..कुछ उधार तो udhaar hee रह जाते हैं ..हम ता -उम्र नही चुका paate ..इसलिए हरेक अंतरे की आखरी पंक्ती बेहद मायने रखती है. ...

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  29. Shaandaar abhivyakti.
    Waise tippadee udhaar chodee ja saktee hai kya?
    { Treasurer-T & S }

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  30. दर्पण जी,
    कविता के भावः और अभिव्यक्ति ने अभिभूत कर दिया है.कविता मानो मन को सुबह की हवा की तरह छूती महसूस हुई.माँ बहन पिता ईश्वर...किस का अहसान और उधार नहीं रहता...ऐसे भाव अनुभव तो सबको होते है पर अभिव्यक्त करना तो आप जैसे रचनाकार के लिए ही संभव है..
    बहुत अच्छी रचना लगी...

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  31. बहना तेरी गुडिया जो छुपाई थी मैंने, अभी भी वहीं हैं शायद,
    पर पहले वो "पानी के बुलबुलों की मछली " दे !!
    हाँ मगर, वो संतेरे वाली हाथ के पसीने से काली हुई टॉफी मुझपर उधाररही . *
    आज फिर आई हूँ तुम्हारी इस कविता को पढने...
    तुम्हें तो मालूम ही है वो 'संदूक' जिसे मैं रोज ही पढ़ लेती हूँ पर अब वो मेरे पास है..चोरी जो कर लिया था हा हा हा हा
    हाँ तो कहाँ थी मैं...तुम्हारी इस कविता में...
    हूँ....
    तो बात बदल दी तुमने 'शादी' से बात toffee पर आगयी .. ठीक है मिल जायेगी..
    इतनी अच्छी कैसे लिख लेते हो तुम ???????
    बताना ही पड़ेगा...
    कोई बहाना नहीं...
    बहुत बहुत बहुत (सुन्दर)n where n=infinitive
    इतने सारे भावों को एक ही कविता में उंडेल देना आसन नहीं है दर्पण. कविता के इस शिल्प में तुमने बहुत ही अच्छी महारत हासिल की है.
    बस आशीर्वाद दे रही हूँ ऐसे ही कलम को थामे रहो और अभिव्यक्ति की सरिता बहाते रहो..

    Di

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  32. albatt sochte ho yaar tum.....ye soch mujhe de..de....darpan....ye soch mujhe de....de.....!!!!

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  33. ज़िन्दगी अपनी सारी यादें ले लो ,
    उन पुराने लम्हों को दे दो बस ,
    साँसों का सिलसिला? चलो , उधार रहा.
    badhe shonk se apki posts padh rahi thi..ese padh ke aankhe bheeg gyee...koee lota de mere wo lamhe jab mujhe achhe bure ka khayal aayaa na tha....

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  34. दर्पण साहब इतने लोगों ने जो आपकी इस कृति की मुक्तभाव से प्रशंसा की है उसके बाद मेरए पास वैसे भी कुछ कहने को नही बचता..बस जितनी बार आपकी कविता पढ़ी है हर बार खुद को किसी भँवर के बीच पाया है..एक बहुत भारी nostalgic सा सूनापन और अकथ सी व्यथा..जिसकी anatomy खुद मुझे भी नही पता..गुल्ज़ार साहब और परवीन शाकिर जी को पढ़ने का काफ़ी चाव रहा है मुझे..और उनकी कृतियों मे जैसी बारिश से पुरनम भारी हवा जेहन को जकड़ लेती है..वैसी ही जकड़न इस उधारखाते और संदूक को खोल कर महसूस होती है..
    इन पंक्तियों का क्या कहूँ..काफ़ी चाहा इस पर कुछ लिखना मगर नही लिख सका..
    मेरी अद्वैत आत्मा ले लो,और बस , बस !
    वो "योगभ्रष्ट " मन कैसे दूं तुम्हें ? हाँ, उधार रहा.
    और वह संतरे वाली पसीने से नमकीन टॉफ़ी की याद भी ताज़ा हो गयी

    इतनी खूबसूरत नज़्में बाँटने के लिये आपका शुक्रगुज़ार हूँ..जानते हैं कई बार आपका पूरा ब्लॉग पढ़ने की कोशिशें की..मगर कभी सफ़ल नही हो पाया..हर रचना पैरों मे गोंद बन कर चिपक जाती है..और अब तो लगता है कि कुछ दिन आपके ब्लॉग से दूर रहूँ तो बेहतर होगा..कम्बख्त सासों को कुछ सकून तो मिले..
    ..Heads off..

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  35. और यह टिप्पणी तो चलो आपको वापस करता हूँ मगर इसका अहसास मुझ पर उधार रहा..और शायद जिंदगी भर रहे..

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  36. Kuch uljhe hue sawalon se darta hai dil,
    na jane kyu tanhai mein bikharta hai di..
    kisi ko pana koi mushkil baat nahi,
    na jane kyu kesi apne ko kho dene sew darta hai dil...
    Anjali Chitti

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  37. दर्द तुम्हें लौटाता हूँ में सारा सुकूं ,
    हर तड़पती नस मुझे वापिस चाहिए.
    हाँ मगर, तुमसे पैदा 'ये नज़्म' उधार रही ........

    khamosh kar diya hai aapne,
    tippani nahi kar paaunga..
    Chalo meri bhi ek tippani udhaar rahi...

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  38. bahut shaandaar....
    is baar shabd nahi hai taarif karne ko.... kahi shabdo ko khud pe jyaada ghamand na ho jaaye....

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'ज़िन्दगी' भी कितनी लम्बी होती है ना??
'ज़िन्दगी' भर चलती है...