वो क्रांतियों के दिन थे.
और हम,
मार दिए जाने तक जिया करते थे.
सिक्कों में चमक थी.
उंगलियाँ थक जाने के बाद चटकती भी थीं.
हवाएं बहती थीं,
और उसमें पसीने की गंध थी.
पथरीले रास्तों में भी छालों की गिनतियाँ रोज़ होती थी.
रोटियां,
तोड़के के खाए जाने के लिए हुआ करती थीं.
रात बहुत ज्यादा काली थी,
जिसमें,
सोने भर की जगह शेष थी.
और सपने डराते भी थे.
अस्तु डर जाने से प्रेम स्व-जनित था.
संगीत नर्क में बजने वाले किसी दूर के ढोल सरीखा था.
हमें अपनी गुलामी चुनने की स्वतंत्रता थी.
ये अब हुआ है,
सभी डराने वाली चीज़ें लगभग लुप्त हो चुकी हैं...
...डायनासौर, सपने, प्रेम.
हवाओं ने 'बनना' शुरू कर दिया है.
और खुश्बुओं की साजिश,
झुठला देती हैं,
मेहनत के किसी भी प्रमाण को.
बाजारों में सजी हुई है रोटियाँ और,
रात के चेहरे में
'गोरा करने वाली क्रीम' की तरह,
पुत चुकी है निओन-लाईट.
इस तरह.
सोने भर की जगह में किया गया अतिक्रमण.
यूँ तो इस दौर में...
मरने का इंतज़ार,
एक आलसी विलासिता है.
पर, स्वर्ग की सीढ़ी यहीं कहीं से हो के जाती है.
...यकीनन हम स्वर्ग-च्युत शापित शरीर हैं.
और शांति...
एक 'बलात' आज़ादी.
और हम,
मार दिए जाने तक जिया करते थे.
सिक्कों में चमक थी.
उंगलियाँ थक जाने के बाद चटकती भी थीं.
हवाएं बहती थीं,
और उसमें पसीने की गंध थी.
पथरीले रास्तों में भी छालों की गिनतियाँ रोज़ होती थी.
रोटियां,
तोड़के के खाए जाने के लिए हुआ करती थीं.
रात बहुत ज्यादा काली थी,
जिसमें,
सोने भर की जगह शेष थी.
और सपने डराते भी थे.
अस्तु डर जाने से प्रेम स्व-जनित था.
संगीत नर्क में बजने वाले किसी दूर के ढोल सरीखा था.
हमें अपनी गुलामी चुनने की स्वतंत्रता थी.
"Portrait of Jacqueline", a 1961 Picasso painting.
ये अब हुआ है,
सभी डराने वाली चीज़ें लगभग लुप्त हो चुकी हैं...
...डायनासौर, सपने, प्रेम.
हवाओं ने 'बनना' शुरू कर दिया है.
और खुश्बुओं की साजिश,
झुठला देती हैं,
मेहनत के किसी भी प्रमाण को.
बाजारों में सजी हुई है रोटियाँ और,
रात के चेहरे में
'गोरा करने वाली क्रीम' की तरह,
पुत चुकी है निओन-लाईट.
इस तरह.
सोने भर की जगह में किया गया अतिक्रमण.
यूँ तो इस दौर में...
मरने का इंतज़ार,
एक आलसी विलासिता है.
पर, स्वर्ग की सीढ़ी यहीं कहीं से हो के जाती है.
...यकीनन हम स्वर्ग-च्युत शापित शरीर हैं.
और शांति...
एक 'बलात' आज़ादी.
हतप्रभ, अवाक...जैसे सपने देखते हुए को झंझोरकर सच दिखाया गया हो, शीर्षक कई मायनों की गुत्थी को खोलता है. दर्पण सा है लिखना. ये पंक्तियाँ एक अकिंचन पल को विस्तार देती हैं.
जवाब देंहटाएंयूँ तो इस दौर में...
मरने का इंतज़ार,
एक आलसी विलासिता है.
यार दर्पण तुम कविता में इतना कुछ कह देते हो कि हमारी टिप्पणी बहुत बौनी होती है
जवाब देंहटाएंआग.... अनजाने रास्ते, रातें... सच का लबादा ओढ़े अतीत में घटे भविष्य का डर
जवाब देंहटाएंअंतिम वन एंड हाल्फ पैरे में दर्पण है
Aapne waaqayi nishabd kar diya! Is qadar tees aur kasak ke rachana dil me chubh-si gayi...
जवाब देंहटाएंkyaa andaaz he guzri hui baton ko btaane kaa bhut khub . akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंहवाओं ने 'बनना' शुरू कर दिया है...
जवाब देंहटाएंचमत्कृत करते शब्द...
हम जैसे साधारण टिपण्णी दाता का इम्तेहां लेती कविता.....
मुझे क्या बुरा था मरना...
अगर एक बार होता...
:)
कितनी ओर कितनी बार तारीफ़ करूँ तुम्हारी .........सो सोचता हूँ ....बाँट लूँ तुमसे किसी रोज ...आधी आधी एक गोल्ड फ्लेक .......बड़ी वाली
जवाब देंहटाएंआज विलासिता खाये जात है, महँगाई डायन के अतिरिक्त।
जवाब देंहटाएंअद्भुत रचना...
जवाब देंहटाएंbahut achchi.
जवाब देंहटाएंबदलते दौर की सच्चाई मान लूं। या यह कि बदलते दौर का एक आकलन..जो भी हो..बदलने का अर्थ ही होता है कि कुछ नया हुआ..। नया इसलिये कि पुराना कुछ होता नहीं..। आज पैदा होने वाले बच्चे जब बडे होंगे तो शायद आज के हालतों का आकलन कुछ इसी तरह करेंगे..आज के हालत को लेकर। जो भी हो, बहुत दिनों बाद कविता की लय में दिखाई दिये जो बेहद ही प्रभावशाली है। अनुरागजी ने कहा न कि कितनी और कितनी बार तारीफ करूं....। हद होती है भाई। हद से पार जा रहे हो आप..सुखद यह है कि यह जो पार है वो भी तारीफ करने वाला ही है। काश के मैं भी सुट्टा लगाता तो कहता कि आधी आधी एक गोल्ड फ्लैग..बडी वाली.....
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar
जवाब देंहटाएंसही बात को कहती आपकी रचना अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंझकझोर दिया है आपकी कविता ने .....जैसे गहरी नींद से जगाया हो ....कमेन्ट करने का मन नहीं था....लेकिन जागने की निशानी छोडनी थी
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना है भाई ।
जवाब देंहटाएं"यूँ तो इस दौर में...
जवाब देंहटाएंमरने का इंतज़ार,
एक आलसी विलासिता है."
जीवन के कठिन दौर में हमारी जिजिविषा, चाहे आंधी आए या हो मूसलाधार बारिश, हर पल अपनी अंतिम सांस तक भरपूर जीने को प्रणबद्ध होती है, कि आंधी और बारिशों का भी हौसला पस्त पड़ जाए, जो सुकून भरे दिनों में संभव ही नहीं. बेहद गहरे अर्थों को समेटती खूबसूरत और संवेदनशील रचना. आभार.
सादर
डोरोथी.
सोचता हूँ तुम्हारे नाम से एक ड्राफ्ट बना के रख दूँ तारीफों वाली ... और कट पेस्ट करता रहूँ हर बार ...
जवाब देंहटाएंकाश मैं भी कभी बाँट पाता बड़ी गोल्ड फ्लेक तुम्हारे और डा. साब के साथ ....
अर्श
हवाओं ने 'बनना' शुरू कर दिया है.
जवाब देंहटाएंऔर खुश्बुओं की साजिश,
झुठला देती हैं,
मेहनत के किसी भी प्रमाण को.
बाजारों में सजी हुई है रोटियाँ और,
रात के चेहरे में
'गोरा करने वाली क्रीम' की तरह,
पुत चुकी है निओन-लाईट.
bahut khoob.
सही है..
जवाब देंहटाएंगोल्ड फ़्लेक के रेट्स बढ़ गये होंगे मार्केट मे..!! ;-)
सच , हकीक़त , यथार्थ ,
जवाब देंहटाएंख्वाब , झूठ , तिलिस्म ,
ज़ंजीर , जकड़न , गुलामी ,
आज़ादी , स्वतंत्रता , उन्मुक्तता ,,,,
शब्द... कोई भी हो
अपनी अनंत यात्रा पर निकलता है
तो 'इक मंजिल' पाने के लिए
"प्राची-के-पार" की राह तकता है ...
ताकि ... ताकि ....
उन सब शब्दों को इक लिबास मिल सके ...
सम्पूर्णता का लिबास
इक कविता ,
इक नज़्म ,
इक आलेख ,
इक वार्ता ,
इक निबंध ,
इक विवरण ,
इक प्रसंग ,
और
इक 'साहित्य' हो पाने का लिबास ...
तुम्हारी तारीफ़ ...
शायद ...नहीं कर पाऊंगा..
7.5/10
जवाब देंहटाएं=बेहतरीन=
एक उत्कृष्ट रचना के समस्त गुण विद्यमान
उच्च कोटि की पोस्ट
आम पाठक के लिए नहीं
कविता किस कोटि की है नहीं पता अर्थ न भी समझने की कोशिश करे तो भी पढ़ने पे भली सी लगती है.परत दर परत उलझती है,सुलझती है..बीत चुका वक़्त परफेक्ट सा लगता है.चीज़े कम थी सकून ज्यादा ..बहुत कुछ होने पे भी वर्तमान टेंस सा है..बरसो से संचित थकान ने विलासता का रूप ले लिया है.अब भूख मर चुकी है,मेहनत की महक महंगी खुश्बू में गुम गयी है.रात सिर्फ सोने के लिए होती थी नींद पूरी पूरी की जाती थी.रातों से अँधेरा,नींद और सपने सब गायब हो चुका है...क्रांतियाँ होती थी कम से कम मार दिए जाने तक तो जीते ही थे हम.अब बस मौत के इंतज़ार में हर नये दिन के साथ अपनी कब्र के एक कदम और निकट पहुंचते है.क्रांति की कोई मशाल नहीं विचारों की मद्दिम चिंगारियां मात्र है बस.. शापित शरीर हैं..
जवाब देंहटाएंक्यों..
आत्माएं शरीरों में दफनाई गयी है...
शायद..
बस किसी अनबूझ ग़लतफ़हमी में
पर..
विश्व में अकारण तो कुछ भी नहीं..
आप ही के शब्दों में अब सोच जिहादी नहीं सूफियाना हो चुकी है...
PS :इक 'साहित्य' हो पाने का लिबास :)
बढ़िया अभिव्यक्ति बधाई
मैं सिगरेट नहीं पीता.. सुरूर के लिए ऐसे चंद अलफ़ाज़ ही काफी है..मार दिए जाने तक जीना मुझे बस इसी ब्लॉग पे मिल सकता था..
जवाब देंहटाएंउफ़ इक इक शब्द चोट कर रही है दिलो दिमाग में. लगता है बहुत देर से आई हूँ आपके ब्लॉग पर. मगर आई तो सही. बहुत ही सटीक रचना.
जवाब देंहटाएंवो क्रांतियों के दिन थे.
जवाब देंहटाएंऔर हम,
मार दिए जाने तक जिया करते थे.
......
रोटियां,
तोड़के के खाए जाने के लिए हुआ करती थीं.
....
रात बहुत ज्यादा काली थी,
जिसमें,
सोने भर की जगह शेष थी.
और सपने डराते भी थे.
अस्तु डर जाने से प्रेम स्व-जनित था
....
आपकी गहरी सोच और उससे उपजा ये कथ्य दोनों ही लुभा गए !
निःशब्द कर दिया आपने...
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ ?????
मुझे सिगरेट पीना शुरू करना चाहिए अब...जाने कैसे अब तक मुंह नही लगी..:) दर्शन भाई.......again impressed...! कमेंट मे कंजूसी कर लेने दो.!
जवाब देंहटाएंमैं कहाँ जाऊँ अनुराग जी की तरह बडी वाली फ्लेक तो नही बाँट सकती न।
जवाब देंहटाएंऔर शांति...
एक 'बलात' आज़ादी.
कटु सत्य। कहाँ रहते हो आज कल? आशीर्वाद।
brilliant.. Hatz off
जवाब देंहटाएंkahne ko shabd hi nahin hain.itna sunder likhe hain aap.
जवाब देंहटाएंI have words to say just superb.........
जवाब देंहटाएंमैंने आपके पास इन्हें भेजा है.... इन लोगों का अपने घर पर दीवाली ( 5 Nov 2010) शुक्रवार को स्वागत करें.
जवाब देंहटाएंhttp://laddoospeaks.blogspot.com/
नई कविता देख लपक के आया था ...यह कविता अधिक अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएं..बेहतरीन अभिव्यक्ति..चमत्कृत करने वाली शब्द सरंचना..बधाई।
अति सुन्दर मित्र, तुम्हारे अन्दर निश्चय ही एक कलाकार है
जवाब देंहटाएंnice write !!
जवाब देंहटाएंC O N G R A T S !!!
Apni Kahani 'Ek Sigret Zindagi' yaad aayi.
जवाब देंहटाएंPrem maar daalta hai
Kyonki wo Zindagi hai...
Aakhiri kash pe gash kha jaane se pahle ka
Bujha-bujha-sa lamba Sutta!
Yahaan pahaadon pe aksar
Mazdooron ko
Rahgeeron se poochhte sunti hoon :
"Baaboo ji, beedi hai?"
Ya "Baabo ji, Taim kya hua?"
Zindagi Beedi hai
Aur Taim bada kharaab chal raha hai
Jabki Zindagi aur taim ek hi cheez ke do naam hain
Hamne hi use Sutta bana diya hai...
Aakhiri kash!
Jo log bahut shiddat se jeena chaahte hain
Wo aksar khudkushi kar lete hain
Apne kandhe pe apni laash lekar
Unhen jana hi padta hai uski talaash men
Jo milti hi nahin
Magar hoti hai kambakht apne hi kheese men
Chalo, unke aakhiri kash se pyaar karen...
Chalo unki sigret sulagne se pahle
Us me se ek tukda tod kar
Apne honthon se laga len...
Baaboo ji...
Maachis hai?
kuch kahu to shayad kam lage........
जवाब देंहटाएंaaj k jitne b blogs dekhe, sab hindi bloggers ya to frustration me h ya phir vo faltu log h jo ghr pe makkhiyo k alava b koi teer marne ki sochte h.
pahli baar aapki lekhni me kuch nya dekha, something different, which i ws searching frm many days.............ek ullas h aapki lekhni me.
apki 'ek samprayadayik kavita' badi pasand ayi.
shubhekshu-V!V
बहुत अच्छा लिख लेते है...इसे कभी रोक्येगा मत...लेखन जारी रखियेगा..
जवाब देंहटाएंआज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ,अच्छी रचना , बधाई ......
जवाब देंहटाएंऔर खुश्बुओं की साजिश,
जवाब देंहटाएंझुठला देती हैं,
मेहनत के किसी भी प्रमाण को.
xxxxxxxxxxxxxxxx
बिलकुल सही कहा ..
आपके ब्लॉग पर आकर हार्दिक प्रसंता हुई ...बहुत बढ़िया कविता
बहित प्रभावी अंदाज़ में आप ने बदलते परिवेश को प्रभावित किया है !
जवाब देंहटाएंbahut hi badiya..
जवाब देंहटाएंmere blog par bhi kabhi aaiye
Lyrics Mantra
कुछ भी कहने में अस्मर्थ।
जवाब देंहटाएंएकदम बोलती बंद।
---------
आपका सुनहरा भविष्यफल, सिर्फ आपके लिए।
खूबसूरत क्लियोपेट्रा के बारे में आप क्या जानते हैं?
यूँ तो इस दौर में...
जवाब देंहटाएंमरने का इंतज़ार,
एक आलसी विलासिता है.