...लो,
...वो पगली फिर उम्मीद से है !
कविता:
कविता,
मुहावरों में ऊँटों के मार दिए जाने का कारण जानने की 'उत्कंठा' है.
कविता जीरा है...
..जब वो भूख से मरते हैं.
अन्यथा,
पहाड़.
पहाड़...
...चूँकि खोदे जा चुके हैं,
...गिराए जा चुके हैं, ऊँटों के ऊपर.
इसलिए दिख जाती है,
पर समझी नहीं जा सकती.
'कविता लुप्त हुई लिपि का जीवाश्म है.'
पहाड़ खोद के चूहे निकाले जाते हैं,
और, खाया जाता है.
उन चूहों के खाए जा चुकने के बाद...
'आत्म -ग्लानी का मक्का' है कविता.
(कविता पड़ी रहती है...
उदास,
क्यूंकि वो अपने गिरेबान में झांकती है.)
उसके सरोकारों को कोढ़ कहा गया.
जब उसने अंधे की आँख बननी चाही,
अब बस वो राम के बगल में बैठी रहती है,
किसी बाँझ, लड़ाकू मुद्दे सी.
कविता...
पड़ी रहती है,
थक के,
चूर चूर.
...कुत्तों की पूंछ सीधी करने के बाद.
वो घबराती है वहाँ जाने में,
जहाँ,
नौ मन तेल होता है.
बस पड़ी रहती है...
राधा के उतारे जा चुके कपड़ों के बीच में,
इज्ज़त और आत्म सम्मान सी.
क्षेपक
कविता ज़ेहन में अचानक रिंग टोन सी नहीं बज सकती,
क्यूंकि उसका अस्तित्व 'शब्द' है.
वो ज़ेहन में पड़ी रहती है अब बस....
अनरीड मेसेज की तरह कभी डिलीट कर दिए जाने के लिए.