रविवार, 23 अक्तूबर 2011

...हेंगओवर अनप्लग्ड !

उन कुछ गिने चुने लोगों के लिए

दोस्तों,
हम अलग तरह के लोग हैं,
समाज 'को' बहिष्कृत किये हुए.
चिर निद्रा में हैं,
स्वप्न में, जो वास्तविकता से अधिक सत्य हैं.
एक ही समय में वक्त से इतने पीछे और इतने आगे,
कि हमेशा समकालीन.
विरह की विरचना के लिए प्रेम करने वाले.
इतने आत्मकेंद्रित कि बीसियों बार 'सर्वे भवन्तुः सुखिनः' का जाप करने वाले.
इतने दोगले कि दोनों पक्षों के विश्वास पात्र.
हम बस सोचने वाले लोग हैं,
कर कुछ नहीं सकते हम.
इसलिए सोचते हैं,"करने से क्या हो जाएगा?"
हर संभव चीज़ को इतना असंभव किये हुए हैं हम अपने लिए कि,
असंभव भी 'बस' संभव के समतुल्य ही असंभव है हमारे लिए.
हमारे विचार पैराडॉक्स से उत्पन्न लोजिक हैं.
चीजों के इस हद तक विरोधी, इतने रिबेलियन कि,
हर चीज़ की सुन्दरता 'एज़-इट-इज़' में स्वीकार्य है हमें.
इतने बंधनों में कि पूर्णतया मुक्त.
जीत जाने को इतने उत्सुक कि हर हार के बाद भी अति उत्साहित.
(इतने ज़्यादा हतोत्साहित कि, हमेशा उत्साह से भरे हुए.)
इतने डरे हुए कि, निडर.
हर इन्सान में कोई ना कोई खूबी होती है,
हमारी खूबी है कि हम रो सकते हैं 'ख़ुशी-ख़ुशी'
दोस्तों,
हम अलग तरह के लोग हैं,
कि हम मृत्यु से पहले मर चुके है कई बार,
इसलिए आनंद में हैं जीवन के.



इशिहारा टेस्ट: यदि आपको उल्लिखित कविता में ढेर सारे विरोधाभास दिखते हैं तो खुश हो जाइए कि आप अब्नोर्मल नहीं हैं.