रविवार, 27 जनवरी 2013

युवा

हमारा सवेरा ४ बजे का सात्विक सवेरा नहीं...
११ का 'हेंग ओवर' सवेरा है.
जो ज़िन्दगी के खट्टेपन को,
सपनों के नमक लगा के चाट डालता है.

हम,
जो बस,
पासे के फैंक दिए जाने के बाद से...
'हार जाने तक'
भर की उत्तेजना हैं.

हम,
चमकते खंजरों के पीछे घिसे हुए मौलिक,
फिंगर प्रिंट्स .
जिसकी शिनाख्त,
ग़ालिब आके नहीं कर सकते.

हम,
अपनी-अपनी प्रेमिकाओं को,
ओर्गेज्म और धोखा दिए जा चुकने के बाद,
दीवारों के ऊपर उकेरे गए...
कुंठित
शब्द विन्यास...
'शादी से पहले, एक बार अवश्य मिलें.'

हम बढ़ी हुई दाढ़ियों में छुपे हुए आत्म विश्वास हैं.
टिके रहने वाला पलायन हैं हम.
हम शराब की बोतलों से पैदा होने वाली छोटी छोटी अपेक्षाएं हैं...




एक) अपेक्षाएं 'मादा' होती हैं,
दो) इन्होनें अभी होश नहीं संभाला.
और,
तीन) भ्रूण हत्या बस 'कानूनन अपराध' भर है.