रविवार, 27 जनवरी 2013

युवा

हमारा सवेरा ४ बजे का सात्विक सवेरा नहीं...
११ का 'हेंग ओवर' सवेरा है.
जो ज़िन्दगी के खट्टेपन को,
सपनों के नमक लगा के चाट डालता है.

हम,
जो बस,
पासे के फैंक दिए जाने के बाद से...
'हार जाने तक'
भर की उत्तेजना हैं.

हम,
चमकते खंजरों के पीछे घिसे हुए मौलिक,
फिंगर प्रिंट्स .
जिसकी शिनाख्त,
ग़ालिब आके नहीं कर सकते.

हम,
अपनी-अपनी प्रेमिकाओं को,
ओर्गेज्म और धोखा दिए जा चुकने के बाद,
दीवारों के ऊपर उकेरे गए...
कुंठित
शब्द विन्यास...
'शादी से पहले, एक बार अवश्य मिलें.'

हम बढ़ी हुई दाढ़ियों में छुपे हुए आत्म विश्वास हैं.
टिके रहने वाला पलायन हैं हम.
हम शराब की बोतलों से पैदा होने वाली छोटी छोटी अपेक्षाएं हैं...




एक) अपेक्षाएं 'मादा' होती हैं,
दो) इन्होनें अभी होश नहीं संभाला.
और,
तीन) भ्रूण हत्या बस 'कानूनन अपराध' भर है.

17 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सटीक धोया है..मन के निर्मित मैलों को।

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  2. सपनों के नमक! मीठे सपनों से इतर नमकीन सपने या मीठे सपनों से झरता नमक! खैर!
    बहुत दिन बाद आया और टुक-टुक देखता रह गया..अजीब भंगिमायें लेते हो भाई!
    और मैं मुरीद....

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  3. हमारा सवेरा ४ बजे का सात्विक सवेरा नहीं...
    ११ का 'हेंग ओवर' सवेरा है.
    जो ज़िन्दगी के खट्टेपन को,
    सपनों के नमक लगा के चाट डालता है ...
    ऐसे सामने बिठा कर दो टूक आमने-सामने की अभिव्यक्तियाँ जरा मुश्किल से पढ़ने में आती है ... आपके ब्लॉग एवं वॉल तक आना सार्थक रहा ...

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  4. साबित कर दिया सच को पचाना सच लिखने से ज्यादा मुश्किल होता है ...

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  8. जाने कोई केसे खुद को बाहर रख कर देख पता हे खुदको,
    या कोई मिरर रखा होता हे अपने सामने,
    जो भी हे बढ़िया हे ।। :)

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  9. वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
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'ज़िन्दगी' भी कितनी लम्बी होती है ना??
'ज़िन्दगी' भर चलती है...