एक मरा हुआ हिरण चाहता है कि वो
धरा के सभी भेड़ियों की उदर पूर्ती कर सके
हार चुका सैनिक
आत्मसमर्पण में भी आत्मसम्मान ढूंढ लेता है
कहते हैं कि हर रोटी का भार इक्कीस ग्राम होता है
(आत्मा के भार के बराबर)
हिरण की आत्मा नहीं मरती
सैनिक का आत्मसम्मान नहीं मरता
रोटी का भार नहीं मरता
इन तीन चीज़ों के इलावा भी कई चीज़ें हैं जो नहीं मरती
दरअसल चीज़ों के इलावा कोई चीज़ नहीं मरती
जिन क्षणों में मैं मृत्यु को प्राप्त होऊं
उन क्षणों में मैं चाहूँगा कि तुम किसी दूसरे कमरे में रहने लगो
कहते हैं कि मृत्यु शैय्या में पड़े व्यक्ति के ऊपर
गिरने वाले आंसू कभी नहीं मरते
वे किसी आत्माहीन हिरण का शरीर बनते हैं
या फ़िर किसी सैनिक का आत्मसमर्पण
या एक रोटी के बराबर भार का भार
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'ज़िन्दगी' भी कितनी लम्बी होती है ना??
'ज़िन्दगी' भर चलती है...