शनिवार, 16 नवंबर 2013

मध्यमार्ग


बस इतनी भर रहें उम्मीदें,
जितनी जरूरी है एक,
कोई भी एक दर्द सांझा करने के लिए
जिसमें लॉस वेगस के कैसिनो और घाना की मौतों में
बना रहे सांख्यिकी का समभाव
जिससे सरहदें न भी टूटे तो भी
मोनालिसा दुनियां के हर कोने से मुस्कुराती दिखे
वे सही कहते हैं, विकास गली-गली पहुंचेगा तो रुक जाएगा अंततः
पर एक मछुवारे के जाल में हमेशा फंसती रहें मछलियाँ
कम अस कोई कम एक किताब में मिले हर घर में
और जो धर्म ग्रन्थ न हो
न हो दोनों वक्त का भोजन
आधी से अधिक आबादी के लिए
पर भूख आधी न करे आबादी
 एक इतवार हो राजनीति के लाल हरे और भगुवा रंगों का
पिकनिक स्पॉट की उम्मीद नहीं वियतनाम में
किन्तु उतने ही मूल्य की शराब बाँट दी जाए वहां
जितने की ऐ.के. 47 खरीदी जाती रही हैं अतीत में
 टूरिज्म डेस्टिनेशन न भी बन पाए काबुल
पर माइन्स के लिए शहर से कोई अलग जगह निर्धारित हो
मुझे बताओ,
यदि सारी अन्तरंग प्रेम कविताएँ
नग्न करके बेच दी जाएं टाइम्स स्केव्यर में
क्या तब भी नहीं खरीदी जा सकती कश्मीर की एक बूढ़ी, पोपली, मुस्कान?
बोलो उम्मीदों से इतना तो किया जा सकता है न,
बोलो उम्मीदों की ख़ातिर इतना तो किया जा सकता है न?
(दुनियां की सरहदों की प्रासंगिकता 'ओलम्पिक्स' के अलावा और कोई नहीं लगती मुझे)

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