शनिवार, 16 नवंबर 2013

कौन मरा है भला आज तक

‘निर्वाणा’ बैकग्राउंड में चल रहा है.
कम एज़ यू आर...
और इस वक्त लिखने का बिलकुल भी मन नहीं.
इस क्षण की मनः स्थिती मेरे अस्तित्व का डी एन ए है...
सबसे क्षुष्मतम इकाई
तथापि, मेरे अस्तित्व की सारी आवश्यक जानकारी अपने आप में समेटे हुए
तो इस वक्त ‘भी’ लिखने का बिलकुल मन नहीं है.
शायद इसलिए ही लिख पा रहा हूँ.
फेसबुक में एक पर्सनल मैसेज पॉप अप होता है...
“आप सबसे ज्यादा किस चीज़ से डरते हो?”
“मृत्यु से”
“लेकिन आप तो कहते हो कौन मरा है भला आज तक?”
“इसलिए ही तो डरता हूँ”
दूसरों के प्रश्नों के उत्तर देते वक्त मुझे उन प्रश्नों के भी उत्तर मिलते रहे हैं
जो प्रश्न (उत्तर नहीं) मुझे आज तक ज्ञात ही न थे.
अकेलापन एक गर्भवती त्रासदी है
जो अतीत में सदा विक्षिप्तता ही जनती आई है
“तुम कितनी बकवास बात करते हो न आजकल?”
“हाँ ये अच्छा है.”
म्युज़िक प्लेयर्स में शफल का ऑप्शन
विचारों को विचार करके ही बनाया गया है.
गीत बदल चुका है...
...लव विल टियर अस अपार्ट अगेन.

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'ज़िन्दगी' भी कितनी लम्बी होती है ना??
'ज़िन्दगी' भर चलती है...