शनिवार, 16 नवंबर 2013

कितना सुख था कि हर बार घर लौटकर आने के लिए मैं बार-बार घर से बाहर निकलूँगा

आत्महत्या सबसे बड़ा पलायन नहीं
उससे बड़ा पलायन है उसे टालते चले जाना
पलायन नाउम्मीदी की जाया नहीं
असंतुष्टि से जन्मी अदूरदर्शी क्रांति है
(कौनसी क्रांति दूरदर्शी रही है वैसे)
हारे हुए तो सब हैं
अपनी हार को खेल भावना के चलते
सहर्ष स्वीकार करना है पलायन
समर्पण भक्ति मार्ग का योगभ्रष्ट है यदि
तो ज्ञान मार्ग का भटका पलायन
पलायन में पूर्णता आने पर यकीन कीजिये
जब कुछ न होगा नकारने को
आप पलायन से भी पलायन कर जाओगे
सारे संरक्षित फोसिल्स के बीच
डो डो प्रजाति सा
पलायन नैसर्गिक है

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Title Courtesy : विनोद कुमार शुक्ल 

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आप की इस प्रविष्टि की चर्चा रविवार, दिनांक :- 24/11/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक - 50- पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर ....

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  2. आप की ये सुंदर रचना आने वाले सौमवार यानी 25/11/2013 को नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है... आप भी इस हलचल में सादर आमंत्रित है...
    सूचनार्थ।

    एकमंच हम सब हिंदी प्रेमियों का साझा मंच है। आप को केवल इस समुह कीअपनी किसी भी ईमेल द्वारा सदस्यता लेनी है। उसके बाद सभी सदस्यों के संदेश या रचनाएं आप के ईमेल इनबौक्स में प्राप्त करेंगे। आप इस मंच पर अपनी भाषा में बात कर सकेंगे।
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    [आप से भी मेरा निवेदन है कि आप भी इस मंच की सदस्यता लेकर इस मंच को अपना स्नेह दें तथा इस जानकारी को अपनी सोशल वैबसाइट द्वारा प्रत्येक हिंदी प्रेमी तक पहुंचाएं।]

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  3. बहुत सुन्दर !
    (नवम्बर 18 से नागपुर प्रवास में था , अत: ब्लॉग पर पहुँच नहीं पाया ! कोशिश करूँगा अब अधिक से अधिक ब्लॉग पर पहुंचूं और काव्य-सुधा का पान करूँ | )
    नई पोस्ट तुम

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  4. बोहोत ही गहरी रचना .... साधुवाद

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'ज़िन्दगी' भी कितनी लम्बी होती है ना??
'ज़िन्दगी' भर चलती है...