शनिवार, 16 नवंबर 2013

एक अधूरी कविता भी होती है कविता

हमारा अस्तित्व दूसरे क्षण से प्रारम्भ हुआ दरअसल
हम कभी पहले क्षण में थे ही नहीं
हम हैं क्यूंकि हमें पिछला पल याद है
स्मृतियाँ ही अस्तित्व हैं
वो दूसरा क्षण ही प्रथम क्षण था 'होने' का
अपने पूर्व की स्मृति लिए हुए।
पहला पल जानना था
जानना द्वेत नहीं
द्वेत है ये जान लेना कि जान गये
यही था दूसरा क्षण

सब जान लेने के बाद भी बचा रहता है
जानने को जानना
और इसलिए
एक अधूरी कविता भी उतनी ही कविता होती है
पूर्णत्व की कोई परिभाषा नहीं होती
और जो भी परिभाषा है वो स्वयम पूर्ण नहीं है
अधूरेपन को परिभाषा की आवश्यकता ही नहीं

हम केवल देखते भर ही नहीं हैं सत्य
हम पहले निर्मित करते हैं उसे
और लगभग साथ-साथ उसे ग्रहण करते हैं
देखते हैं उसे।
हम अपनी रचनाशीलता से इतने मुग्ध हैं कि
न देखने वाले को देख पाए कभी
न बनाने वाले को।

कविता, इश्वर, मृत्यु और प्रेम
अकेले हैं अपने समस्त अधूरेपन के साथ
एक अधूरी कविता भी होती है कविता।

1 टिप्पणी:

  1. As usual आपकी कविताएँ जीवन को विज्ञान से आध्यात्म के बीच की लपटीली गलियों में कहीं छोड़ देतीं हैं ।

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'ज़िन्दगी' भी कितनी लम्बी होती है ना??
'ज़िन्दगी' भर चलती है...