सम्बन्धों का वो सबसे बुरा दौर है
जब हम भूल चुकते हैं एक साथ रोना
वो जीवन का सबसे दुखद क्षण ठहरा,
जिसमें हम ढूंढते हैं जीने का कम-अस-कम एक उद्देश्य
एकांत का वो एक पल सबसे मुश्किल पल है
जिस पल एकांत ‘निजी’ नहीं होता
नाउम्मीदी की उम्र कैद कहीं बेहतर,
कठिन है उम्मीद की एक रात गुज़ारना
धोखा खाना उतना बुरा नहीं
जितना बुरा होता है सचेत हो जाना.
आत्महत्या की भी चाह न रहना,
सबसे खतरनाक निर्लिप्तता है.
सबसे डरावनी वो मृत्यु है जिसका आजन्म इच्छा की गयी हो
एक याद रह गयी कविता है सबसे निकृष्ट कविता.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
'ज़िन्दगी' भी कितनी लम्बी होती है ना??
'ज़िन्दगी' भर चलती है...