शनिवार, 16 नवंबर 2013

तुमसे प्रेम करना



तुमसे प्रेम करना एक निहायत ही ग़ैर जरूरी चीज़ रही हमेशा मेरे लिए.
जिया जा सकता है एक दूसरे के बिना भी
शायद उससे ज्यादा अच्छे से जितना साथ में रहकर. 
जरूरत नहीं हमें एक दूसरे की
ये और बात है कि हम 'चाहते' हैं एक दूसरे के साथ जीना.
तुम खाने, पीने, सांस लेने या सू सू करने जैसी कोई आवश्यकता नहीं हो मेरे लिए.
केवल इच्छा हो मेरी,
इच्छा,
जैसे वॉंग कोर वाई की इन दी मूड ऑव लव देखना. 
जैसे पैसोवा के किसी ज़ेन हेट्रोनिम को पढना.
जैसे हरी प्रसाद चौरसिया का हंसध्वनी सुनना.
जैसे पढना कसप को बेबी की खातिर
...बार बार.
इच्छा,
जैसे नहाने के बाद गीले बदन माइल्ड्स का एक कश,
जैसे स्वप्न देखना.

बेशक जीने के लिए 'जरूरी' चीजें चाहिए, मगर जीते हम ग़ैर जरूरी के वास्ते हैं.
सांस लेने हुए मर जाने की जरूरत के बीच में तुम विन्सेंट का ग़ैर जरूरी अंतिम सूरज हो मेरे लिए.
ग़लत कहते हैं लोग कि प्रेम जीने के लिए जरूरी होता है.
प्रेम के 'लिए' जीना जरूरी होता है.
प्रेम इच्छा है और जीना आवश्यकता.
आज़ादी और बंधन में वही अंतर है जो इच्छा और आवश्यकता में है.

6 टिप्‍पणियां:

  1. Shayad jab "ichha" aavyshakta ban jaati hai wahin se prem ka uunt aarambh ho jaata hai

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  2. प्रेम के 'लिए' जीना जरूरी होता है.
    प्रेम इच्छा है और जीना आवश्यकता.

    और शायद इससे ज्यादा कुछ भी नहीं

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  3. Prem mai kashish hai wahi hume aam insan se khas banata hai.

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  4. Prem mai kashish hai wahi hume aam insan se khas banata hai.

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  5. "आजादी और बंधन में वही अंतर है जो इच्छा और आवश्यकता में "

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'ज़िन्दगी' भी कितनी लम्बी होती है ना??
'ज़िन्दगी' भर चलती है...